Saturday, August 21, 2010

वेतन तो बढ़ा लिए ,क्या जिम्मेवारी भी बढ़ाएंगे ??

बहुत ही अच्छे   तरीके से संसद में सांसदों का वेतन बढ़ने का बिल पास हो गया....हो भी क्यूँ ना!!!आखिर खुद से जुड़ा मामला जो है!पर देखिये लालू जी फिर भी नाराज़ है ,उन्हें तो केबिनट सचिव से एक रुपैया ज्यादा चाहिए!हो सकता है उनकी मांग सही हो,पर क्या वे सच में केबिनट सचिव जितना काम करते है?जब आप आये ही जनसेवा के  लिए हो तो फिर कीजिये निस्वार्थ सेवा! क्या सांसदों को जो सुविधाएँ मिलती है ,उनकी आधी भी सरकारी कर्मचारियों को मिलती है? जी नहीं !!
                                              क्या ये माननीय सांसद एक सरकारी कर्मचारी से अपनी तुलना कर सकते है ?आज एक छोटी से छोटी सरकारी नौकरी के लिए भी बारहवीं पास होना जरूरी है ! अब कितने सांसद अशिक्षित है ये आप सोचिये? एक सरकारी आदमी मामूली सी भूल कर दे तो उसे १६ सी सी के तहत नोटिस मिलता है और अकसर सजा भी होती है! और यहाँ हजारों करोड़ों रुपैये डकारने वाले भी खुले घूम रहे है ,है कोई सजा इनके लिए? एक शाला में पढने वाला बच्चा भी जोर से बोलता है तो बहुत सोच कर ...और इनका बोलना तो संसद में सबने देखा ही है!
               वेतन के अलावा इन्हें जो घोषित और अघोषित सुविधाएँ मिलती है वे किसी से छुपी हुई नही है !इसके बाद भी और वेतन बढ़ने कि मांग करना भारत जैसे देश की जनता के साथ अन्याय ही होगा! सबसे बड़ी बात इन नेताओं में जिम्मेवारी की कमी  है....क्या ये कभी जनता के प्रति अपनी जवाबदेही समझेंगे ? क्या ये, नेता को वापिस बुलाने का हक जनता को देंगें? जब एक छोटे से पद के लिए भी शैक्षिक योग्यता और प्रवेश परीक्षा निर्धारित है तो फिर ये बिना किसी योग्यता के कैसे और क्यूँ काम कर रहे है ???? अगर कोई सांसद ठीक से काम नही करता तो उसे वापिस बुलाने का भी अधिकार जनता के पास होना चाहिए....पर ये नेता ऐसा कोई बिल कभी पास नही होने देंगे.....!

12 comments:

मनोज कुमार said...

बहुत सामयिक आलेख।
आप भी कैसी बात कर रहे हैं। न ज़िम्मेदारी बढेगी न ही बुलाने का अधिका मिलेगा।

Creative Manch said...

"अगर कोई सांसद ठीक से काम नही करता तो उसे वापिस बुलाने का भी अधिकार जनता के पास होना चाहिए....पर ये नेता ऐसा कोई बिल कभी पास नही होने देंगे.....!"
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बहुत सही बात कही आपने
सार्थक पोस्ट
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आभार
शुभ कामनाएं

कुमार राधारमण said...

संभवतः,यही एकमात्र प्रस्ताव होता है,जो बिना किसी बहस के ध्वनिमत से पारित हो जाता है। इन्हें सिर्फ अधिकार चाहिए। कर्तव्यों का ध्यान भूलकर भी न दिलाएं।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

जिम्मेदारी? ये किस चिडिया का नाम है?
नेताओं ने शायद कभी इसका नाम ही न सुना हो।

संजय भास्‍कर said...

बहुत सही बात कही आपने
सार्थक पोस्ट

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीय रजनीश परिहार जी
नमस्कार !
बहुत सारगर्भित आलेख है ।
सात पीढ़ियों का जुगाड़ करने के लिए भारत में हर कोई तभी तो एम पी / एम एल ए बनना चाहता है ।
हत्यारे नेता बन बैठे !
नाकारे नेता बन बैठे !
मुफ़्त का खाने की आदत थी
वे सारे नेता बन बैठे !


…और जनता कुछ समझने को तैयार नहीं ।

गिद्ध भेड़िये हड़पे सत्ता !
भलों - भलों का साफ है पत्ता !
न्याय लुटा , ईमान लुट गया ,
ग़ाफ़िल मगर अवाम अलबत्ता !


बधाई अच्छी पोस्ट , और विविधता से परिपूर्ण ब्लॉग के लिए !
- राजेन्द्र स्वर्णकार

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मैं बोलूंगी खुलकर said...

रजनीश जी, राजनीति और नेताओं के बारे में जितना कहा और लिखा जाए कम है... अच्छा लेख

Urmi said...

आपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
बहुत बढ़िया ! उम्दा प्रस्तुती!

Anand said...

bahut badhiya lekh. ye baat mere bhi dimaag me aaye thi, chitna bhi bhi hue ki hame aur kitna adhik tax dena padega neta ji ke vetan ke liye? fir mujhe unpe daya aa gaye, socha sayed ghotaalo se neta ji ka masik nirvah nahi ho raha hoga isliye wetan badhane ki maang kar dali. Aur kare bhi kyo na, kya hame acha lagega agar hamrare neta ji garibi me jiye... :)

aapse anurodh hai ki aap abhi post hamari site www.kavyalok.com pe bhi aritcals ki categories me submit kare. aur is kranti to aur hava de...

lekh per hardik badhayee

Anand

संजय भास्‍कर said...

विचारणीय लेख के लिए बधाई

संजय भास्‍कर said...

"माफ़ी"--बहुत दिनों से आपकी पोस्ट न पढ पाने के लिए ...