Sunday, February 28, 2010

उड़न तश्तरी बीकानेर में....अन्य ब्लोगर भी आये...

होली के दिन सबको आश्चर्य चकित करते हुए उड़न तश्तरी अचानक  बीकानेर पहुंची!इसमें चालक समीर लाल जी के साथ साथ संजय बेगानी,नीरज गोस्वामी,मास्टर मकरंद ,मिस रामप्यारी ,रतन सिंह शेखावत,ललित शरमा  और डाक्टर मयंक भी थे!ये सभी महानुभाव रजनीश परिहार के यहाँ होली खेलने आये थे!समय आभाव और वयस्त होने के करण ताऊ समेत बहुत से ब्लोगर आ नहीं पाए,लेकिन उनके शुभकामना सन्देश मिले है!
                     इस अवसर पर बीकानेर क़ी परम्परा के अनुसार खूब हुल्लड़ हुआ और जम कर होली खेली गयी!लगभग दो घंटे के समय का पता ही नहीं चला और फिर विदाई क़ि घडी भी आ गयी!पुनः मिलने के वादे.के साथ सभी ब्लोगर्स को बीकानेरी रसगुल्ले ,भुजिया आदि देकर विदा किया गया....फिर मिलने क़ी आस में..
                                                                                                                                                              [बुरा ना मानों होली है] 

Friday, February 26, 2010

एक भारतीय ,जिसे अमेरिकी भी सलाम करते है...


जी हाँ ये है प्रणव मिस्त्री जिन्होंने प्रत्येक भारतीय का सर गर्व से ऊंचा कर दिया है!आज सभी पाश्चात्य देश उन्हें अपने यहाँ आमंत्रित कर रहे है!दुनिया  के बड़े वैज्ञानिक  उनके साथ काम करना चाहते है!दरअसल प्रणव ने सिक्स्थ सेन्स नामक उपकरण बनाया है,जिसने इंटरनेट आधारित विज्ञान क़ि भाषा ही बदल दी है!यह एक छोटा सा गले में पहनने योग्य उपकरण है जो कम्प्यूटर से जुड़ा है! इसके साथ ही हाथ क़ि उँगलियों में पहनी रिंग भी महत्त्व पूरण भूमिका निभाती है!इसकी  सहायता से हम बुक स्टोर में किताब पढ़ सकते है,टिकट पर हाथ लगाते ही सारी जानकारी प्राप्त कर सकते है!किसी भी वस्तु को छूते   ही उसकी सारी जानकारी हमें मिल जाती है प्रणव ने इस उपकरण के द्वारा पूरे विश्व में तहलका मचा दिया है![देखें वीडियो]
                                                            अब कंप्यूटर  पर किये जाने वाले सभी कार्य उँगलियों के इशारे मात्र से किये जा सकते है!यहाँ तक क़ि फोटो खींचना,मेसेज भेजना ,काल करना आदि समस्त कार्य चलते फिरते बिना किसी अतिरिक्त उपकरण के किये जा सकते है!इसके प्रयोग से भारी भरकम कंप्यूटर  के सभी काम चुटकियों में किये जा सकते है!सिक्स्थ सेन्स नामक ये उपकरण उन्होंने मात्र ३५० डालर में बनाया है!अभी उनका प्रयोग जारी है और वे इसे नाम मात्र क़ि कीमत पर उपलब्ध करवाना चाहते है!बड़ी बड़ी विदेशी कम्पनियां इस को मनमानी कीमत पर खरीदना चाहती है किन्तु वे इसे आम जनता को समर्पित करना चाहते है!
आखिर कौन है प्रणव?
गुजरात के पालनपुर में १९८१ में जन्मे प्रणव आई आई टी मुंबई के पूर्व छात्र है!बचपन से मेधावी प्रणव ने गुजरात विश्वविद्यालय में अध्यन के दौरान ही अनेक आविष्कार किये और डिजाइनर, इंजीनियर और आविष्कारक के रूप में अपनी सेवाएँ दी!वे कई निजी संस्थाओं से होते हुए फिलहाल एम् आई टी में शौध के छात्र है !सिक्स्थ सेन्स[छठी इन्द्रिय ]क़ि खोज से वे रातों रात मशहूर हो गए!उन्हें युवा अन्वेषक पुरूस्कार और विज्ञानं को  लोकप्रिय बनाने हेतु भी २००९ में सम्मानित किया गया है!फ़िलहाल वे अमेरिका के मैसाचुसेट्स में रह कर अपने प्रयोग पर कार्य कर रहे है!      

Wednesday, February 17, 2010

जनता किससे करे उम्मीद???

आखिर ये महंगाई कहाँ जाकर रुकेगी?इसने सबके जीवन को प्रभावित किया है!गांवों में एक तो फसलें नहीं हो रही,बारिश समय पर होती नहीं,नहरों में पूरा पानी नहीं मिल रहा..और ऊपर से कमर तोड़ महंगाई!!क्या करे इंसान?हर साल फसल होने क़ि उम्मीद में कर्जा बढ़ता जाता है...और किसान टूटता जाता है!हालात ये हो गए है क़ि लम्बी चौड़ी ज़मीनों के मालिक आज "नरेगा" में मजदूरी कर रहे है!


इधर शहरों में भी हालात कम बुरे नहीं है!यहाँ तो नरेगा का भी सहारा नहीं है!गाँव में इधर उधर रहने का ठौर मिल जाता है,सस्ता इंधन मिल जाता है!जबकि शहर में गरीब अपना मकान बनाने क़ि सोच नहीं सकता और किराये पर रहना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है!बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना मजबूरी है क्यूंकि सरकारी स्कूल एक एक कर बंद हो गए है!रोजाना मजदूरी मिलनी मुश्किल है और सस्ते अनाज का कहीं पता नहीं है!सरकार साथ देने क़ि बजाय महंगाई और बढ़ने क़ि बात करती है!आखिर क्या करें ?दो वक़्त क़ि रोटी जुटा पाना मुश्किल हो गया है....!राजनितिक दल अपनी अपनी ढफली बजा रहे है! जनता किससे करे उम्मीद???/

Tuesday, February 16, 2010

हरिभूमि में 'ये दुनिया है"...

  हरी भूमि समाचार पत्र के १५ फ़रवरी के अंक में वेलेंटाइन डे पर लिखे ये दुनिया है के लेख  को प्रकाशित किया गया है!हमारे विचारों से सहमत होने तथा अन्य लोगों तक पहुँचाने के लिए आभार...

Sunday, February 14, 2010

क्यूँ मनाये हम...वेलेंटाइन डे??

प्यार के कितने रूप होते है ये किसी को बताने की आव्सय्कता नहीं है......लेकिन आज इसे केवल प्रेमी और प्रेमिकाओं से जोड़ दिया गया है.हमारे देश में सदियों से प्रेम का इजहार सभ्य तरीकों से होता आया है जिसे समाज की मान्यता भी थी.कभी किसी ने मर्यादा तोड़ने की कोशिश नहीं की चाहे वो देवर भाभी का प्यार हो या कोई और....क्रिशन राधा के प्यार की कोई मिसाल नहीं मिलती....इसी तरह प्रेम के न जाने कितने रूप देखने को मिलते है....फ़िर हमें वैलेंटाइन दिवस की जरुरत कहाँ पड़ती है...क्यूँ मनाये हम इसे....!
                                                                          विदेशों में जहाँ परिवार नाम क़ि संस्था टूट कर बिखर चुकी है,उन्हें ये नित नए दिन सूझते है ताकि कम से कम एक दिन तो वे प्यार से बिता सके!हमारे यहाँ क़ि संस्कृति इस तरह से भोंडेपन का विरोध करती है,तभी तो हमारे समाज में प्यार के सभी रूप विद्यमान है!रक्षाबंधन,भैया दूज आदि में दिखने वाले प्यार को क्या वेलेंटाइन डे में महसूस किया जा सकता है?इसीप्रकार अन्य त्योंहारों में भी सभी रिश्तों का अपना महत्त्व है!फिर क्यूँ हम शालीनता क़ि बजाय बाजारू प्रेम दिवस को अपनाएं? आज जरूरत इस बात क़ि है क़ि हम बच्चों को रिश्ते नाते समझाए,ना क़ि उन्हें पूरे साल का प्यार एक दिन में सिमटाना  सिखाएं!!!

Monday, February 1, 2010

गण से दूर होता तंत्र.....कौन है जिम्मेवार??? .

अभी हमने अपना गंणतंत्र दिवस धूमधाम से मनाया..!पर क्या हम वास्तव में जनता के लिए लोकतंत्र स्थापित कर पाए?शायद नहीं....!६० वर्षों बाद भी आज सही मायनो में लोकतंत्र स्थापित नहीं हो पाया..!हमारे देश का कानून चंद लोगों के हाथ की कठपुतली बन कर रह गया है!पूरी सत्ता कुछ लोगों के हाथों में सिमट कर रह गयी है!इन वर्षों में हमने अनेकों उपलब्धियां भी हासिल की है,पर नाकामियों के सामने ये बौनी साबित हो गयी है!लोकतंत्र का मतलब मनमानी करण हो गया है!ये हमारे लोकतंत्र की कमियां ही है क़ि अमीर और अमीर और गरीब और गरीब होता जा रहा है!डॉ. भीम राव आंबेडकर ने जिस समाज क़ि कल्पना क़ी थी वो अभी तक स्थापित नहीं हो पाया!देश अभी भी जात पात और विभिन्न वर्गों में बँटा है! जितना समृद्ध हमारा संविधान था ,उतना हम उसको लागू नहीं कर पाए!देश आज भी कभी भाषा तो कभी क्षेत्रीयवाद को लेकर बँटा नज़र आता है!
इजराइल ने ३० सालों में अपने कब्ज़े वाले क्षेत्र में जनसँख्या संतुलन बदल दिया,जबकि हम आज भी कश्मीर को दिल से देश में नहीं मिला पाए!आज भी वहां एक हिन्दुस्तानी ज़मीन नहीं ले सकता!आखिर क्यों?पूर्वोतर राज्यों में भी अलगाव वादी भावनाएं सक्रिय है ,आखिर क्यों?दक्षिणी राज्य भारत का अभिन्न अंग होते हुए भी क्यों क्षेत्रीयवाद से पीड़ित है?हम देश में एकता क़ी भावना क्यूँ नहीं विकसित कर पाए?
इतना मजबूत संविधान होते हुए भी क्यूँ अक्सर नेता इतने घोटाले करके भी आज़ाद है जबकि एक गरीब दाने दाने को मोहताज़ है?२६ जनवरी को राजपथ क़ी झांकियों में असली भारत देश कहीं नज़र नहीं आता! देश क़ी अस्मिता पर हमला करने वाले सरकार के अथिति बने हुए है ,जबकि हजारों निर्दोष पडोसी देश क़ी जेलों में सड़ रहे है!देश पर जान न्योछावर करने वालों के परिजन रोटी रोटी को मोहताज़ है ,जबकि मुंबई का गुनाहगार कसाब जेल में भी सरकारी कवाब खा रहा है!एक लोकतंत्र के मुंह पर इससे बड़ा तमाचा और क्या हो सकता है?
आस्ट्रलिया में हजारों भारतियों पर हमलों के बाद भी हम बेशर्मी से उनके खिलाडियों को आमंत्रित कर रहें है!क्या हमारा कोई स्वाभिमान नहीं?कोई राष्ट्रीय अस्मिता नहीं?एक महान और मजबूत देश का ऐसा अपमान ...सोच नहीं सकते!एक अमेरिकन नागरिक विश्व में कहीं मारा जाए तो वो हल्ला मचा देते है,और हमारे पूर्व राष्ट्रपति के वो कपडे उतार लें तो कुछ नहीं?अजीब लोकतंत्र है ये?
आज़ादी के इतने सालों बाद भी आम जनता महंगाई से त्रसत है ,और सरकार सांत्वना देने क़ी जगह और महंगाई बढ़ने क़ी धमकी देती है!तो फिर किसकी सरकार है ये?आम जनता किससे फ़रियाद करें? क्या इसी लोकतंत्र क़ी हमने कल्पना क़ी थी?आखिर कब मिलेगा हमें सही लोकतंत्र जब एक आम आदमी जोर से बोलेगा भैया आल इस वेल!!!! क्या ये सब कभी बदलेगा?