Thursday, December 31, 2009

नव वर्ष का स्वागत करें.........


दुनिया के बहुत से देशों में नया साल बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। लोग महीनों पहले से नए साल के त्यौहार की प्रतीक्षा शुरू कर देते हैं। यह अकेला ऐसा त्यौहार है, जो सारी दुनिया के लोग अपनी-अपनी विभिन्नताओं और विशेषताओं के बावजूद एक साथ, मिलकर मनाते हैं। दुनिया में फैला आर्थिक संकट भी नए साल के उत्सव को मनाने में कोई बाधा नहीं डाल पाया। दुनिया के विभिन्न देशों में परम्परा के अनुसार नया साल अलग-अलग समय में मनाया जाता है। भारत के अलग-अलग भागों में नया वर्ष अलग-अलग दिन मनाया जाता है।  भारत के ज्यादातर भागों में मार्च-अप्रैल में नया वर्ष मनाया जाता है।


- सिख नानकशाही कैलंडर के अनुसार 14 मार्च होला मोहल्ला नया साल होता है।

- पंजाबी नया साल बैसाखी 13 अप्रैल को मनाया जाता है।

- तेलगु नया साल मार्च-अप्रैल के बीच आता है। आंध्रप्रदेश में इसे उगाड़ी के रूप में मनाते हैं। यह चैत्र महीने का पहला दिन होता है। - तमिल नया साल विशु 13 या 14 अप्रैल को तमिलनाडू और केरल में मनाया जाता है। तमिलनाडू में पोंगल 15 जनवरी को नए साल के रूप में आधिकारिक तौर पर भी मनाया जाता है।

- कश्मीरी कैलेंडर नवरेह 19 मार्च को होता है।

 महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के रूप में मार्च- अप्रैल के महीने में मनाया जाता है।

- कन्नड नया वर्ष उगाडी कर्नाटक के लोग चैत्र माह के पहले दिन को मनाते हैं।

- सिंधी उत्सव चेटी चंड उगाड़ी और गुड़ी पड़वा एक ही दिन मनाया जाता है।

- मदुरै में चित्रैय महीने में चित्रैय तिरूविजा नए साल के रूप में मनाया जाता है।

- मारवाड़ी नया साल दिपावली के दिन होता है।

- गुजराती नया साल दिपावली के दिन होता है दो अक्टूबर या नवंबर में आती है।

- इस्लामिक कैलेंडर का नया साल मुहर्रम होता है। जॉर्जियन कैलेंडर से 11 दिन पहले इस्लामिक कैलेंडर का नया साल आता है।

- बंगाली नया साल पोहेला बैसाखी 14 या 15 अप्रैल को आता है। पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में इसी दिन नया साल होता है।

- पारसी नववर्ष नवरोज होता है यह बसंत की शुरूआत में मनाया जाता है। 2008 में यह 29 मार्च को था।

- बहाई कैलेंडर के अनुसार 21 मार्च नवरोज या नया वर्ष होता है।

- नेपाली नया साल बसंत के पहले दिन मनाया जाता है।

- श्रीलंका के सिंहली अप्रैल में न्यू ईयर मनाते हैं। आओ मिलकर हम सभी नव वर्ष का स्वागत करें.........

Thursday, December 24, 2009

शर्म मगर इन्हें आती नहीं....




रुतबा इतना बड़ा कि हर कोई हैरान हो जाये ....और काम ऐसे कि शर्म भी.शर्मिंदा हो जाए। जी हाँ यही परिचय है इन साहब का। एक छोटी सी बच्ची जो इनकी बेटी कि उम्र की होगी,से छेड़छाड़ का आरोप है इन पर । उन्नीस साल से केस चल रहा था ,लड़की ने शर्मिंदा होकर आत्महत्या कर ली,घर वाले डर कर भूमिगत हो गए,सहेली ने केस लड़ा......और सजा मिली केवल महीने की। ये है कहानी हमारी कानून व्यवस्था की। अगर आरोपी हरयाणा का पूर्व डी जी पी राठौर हो तो यही होगा। हाँ अगर आरोपी हम जैसा कोई आम इंसान होता तो आज भी जेल में सड रहा होता। यही है हमारा कानून,जिसे ये रसूख वाले अपने मन मुताखिब ढंग से .चलाते है और फिर मामूली सजा पाकर बच निकलते है।


इस मामले में सबसे शर्मनाक पल वो था जब ६ महीने की सजा सुन कर राठौर साहब हँसते हुए बाहर निकले। ये हमारी न्यायिक व्यवस्था पर एक व्यंगात्मक चोट थी,जिसे हर एक देशवासी ने महसूस किया। आखिर सबको समान न्याय का सपना कब और कैसे पूरा होगा?आज रुचिका हमारे बीच में नहीं है लेकिन उसकी आत्मा ये सब देख कर जरूर रो रही होगी..और कोस रही होगी हमारी व्यवस्था को..

Sunday, December 13, 2009

पानी रे पानी....

हालात को देखते हुए ये सपष्ट है की अगला विश्व युद्ध पानी के लिए ही लड़ा जाएगा.पूरे विश्व में ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते प्रभाव से ग्लेशियर पिघल रहे है.पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ने से हिमखंड .पिघलते जा रहे है.इससे जहाँ नदियों में पानी की .मात्रा बढ़ रही है वहीँ बहुत से शहरों के डूबने का खतरा हो गया है.समुन्द्र के जल स्तर में मामूली सी बढ़ोतरी से अनेक शहर और देश डूब जायेंगे।
अब इस कहानी का दूसरा पहलू भी है.पूरे विश्व में पीने योग्य जल की भारी कमी हो गई है .समुन्द्र का पानी जहाँ बढ़ता जा है वहीँ पेय जल घटता जा रहा है..शहरों में जहाँ पीने का पानी नहीं मिल रहा वहीँ गाँवों में खेती के लिए भी पानी नहीं है.किसान नित रोज आन्दोलन कर रहे है लेकिन सरकार बेबस है क्योंकि नहरों में जल सिमित है.पानी अमृत के समान कीमती हो गया है.हमारे राजस्थान में तो पानी को अमृत ही माना जाता है.दूर दूर तक फैले टीलों और तपती धूप में पानी की एक बूंद प्यासे के लिए अमृत से कम नहीं है.देश में पानी का संकट इतना बढ़ गया है कि बड़े बड़े शहरो में एक समय ही जल आपूर्ति की जा रही है.
पानी के लिए हाहाकार के बीच बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने प्यास को भी बेचने या भुनाने का धंधा शुरू कर दिया है.पानी की एक बोतल को दस दस रुपये में बेचा जा रहा है.एक ऐसे देश में जहाँ लोग प्यासों के लिए प्याऊ खुलाते थे ,वहां आज पानी को भी बेचा जा रहा है। राजस्थान के सुदूर किसी गाँव में ,जहाँ पानी बहुत कीमती है ...वहां पर भी आप को प्याऊ दिख जायेंगे पर यहाँ देखिये प्यास को भी बेचा जा रहा है .इस सब के बीच हर जगह जल कि बर्बादी देख के भी दिल दुखता है.हमने अभी भी जल का महत्त्व नहीं सीखा.तभी तो जितना काम लेते है उससे कहीं ज्यादा जल हम व्यर्थ में बहा देते है.अभी भी हमने पेय जल का महत्त्व नहीं समझा है,तभी तो पीने वाले पानी से ही हम कपड़े धोते है ,छिडकाव करते है और गाड़ियाँ भी धोते है ..हमें कल के लिए आज ही सोचना होगा...



Tuesday, December 1, 2009

शिक्षा को रोज़गार से जोड़ना होगा...




आज गली गली में स्कूल कालेज खुल गए है..सरकार की प्रोत्साहन नीति के चलते शिक्षा का खूब प्रचार प्रसार हो रहा है.लेकिन क्या ये शिक्षा रोजगार दिलाने में सक्षम है?शायद..नहीं ,क्यूंकि हमने कभी भी अपना शिक्षा तंत्र बनाने की कोशिश नहीं की। बस अंग्रेजों के बनाए तंत्र में ही कुछ फेरबदल कर दिया है.उसी का परिणाम है कि आज हम शिक्षा तो .उपलब्ध करवा रहे है लेकिन नौकरी नहीं.हमारी शिक्षा नौकरियों के मामले में सही नहीं है.इसके लिए हमें शिक्षा प्रणाली में बदलाव करना होगा।


आज की शिक्षा केवल डिग्री दे रही है..जिसका भी कोई महत्त्व नहीं है.हमें आज हमारी शिक्षा को रोज़गार मुखी बनाना होगा.आज जरूरत इस बात की है कि हम स्कूल ..लेवल से ही रोजगार से जुड़े पाठ्यक्रम शुरू करें ताकि बच्चे समय रहते ही अपने रोजगार को चुन सके और उसमे पारंगत हो सके.आज हजारों बच्चे .प्राइमरी के बाद पढ़ना छोड़ देते है.ये बच्चे स्कूल छोड़ कर किसी ना किसी रोजगार को .अपनाते है.यही काम अगर हमारी शिक्षा देने वाली संस्थाएं करने लग जाए तो कोई बच्चा स्कूल छोड़ कर नहीं जाएगा.स्कूल में केवल किताबी ज्ञान देने से कुछ नहीं होने वाला,हमें इसमे रोजगार से जुड़े पाठ्यक्रम .प्रारम्भ करने होगे.बच्चे को उसकी रूचि का पाठ्यक्रम चुनने की आज़ादी देनी होगी ,ताकि वह अपनी पसंद का रोज़गार कर सके।


आज कितने ही निजी संस्थान रोज़गार सम्बन्धी कोर्स चला रहे है,यही काम हमारी शिक्षा संस्थाएं भी बखूबी कर सकती है.इससे स्कूल छोड़ने की नौबत नहीं आएगी और बच्चे अपने पैरों पर भी खड़े हो सकेंगे.प्राचीन काल में गुरुकुल शिक्षण पद्धति इसी उद्देश्य को ध्यान में रख कर बनाई गई थी.वहां बच्चे शिक्षा के साथ साथ अन्य कलाओं में भी पारंगत .होते थे इसीलिए वे गुरुकुल से निकलने के बाद अपने अपने रोजगार में लग जाते थे.शिक्षा को रोजगार मुखी बनाने से जहाँ साक्षरता का प्रतिशत बढेगा ,वहीँ नौकरियों ,रोजगार की भी कमी नहीं रहेगी.....[फोटो गूगल से ]