Sunday, March 22, 2009

पैसे के लिए कुछ भी करेगा...??


क्या हमारा क्रिकेट बोर्ड देश से भी ऊपर हो गया है? शायद हाँ...तभी तो वो आई पी एल को देश से बहार आयोजित करवाने पर .राजी..है..!उसके लिए देश के लोगों का कोई महत्त्व नहीं है...!दर्शक मैच देखना चाहे तो विदेश जाएँ या फ़िर टी वी पर देखें...!बोर्ड के पास इतना पैसा है की ..उसे दर्शकों से होने वाली आमदनी की कोई जरुरत नहीं है....!.इस...से ये सिद्ध हो गया है की ये सब पैसे का खेल है..और यदि सरकार बोर्ड को ना करेगी तो बोर्ड कुछ भी कर सकता है...!अब iस का नाम भले ही .इंडियन .प्रीमियर..लीग हो ये होगा इंडिया से .बाहर...!अब बेचारे नेता तो चाहते थे की ये चुनाव बाद हो क्यूंकि लोग उनका भाषण सुनने नहीं आयेंगे,रैलियों में नहीं आयेंगे...!लेकिन हो गया उल्टा....!अब .चुनाव..भी होंगे और आई पी एल भी होगा..!सरकार और बोर्ड की लड़ाई में देश जाए .पानी में...!पैसे के लिए हम तो कुछ भी करेगा...

Friday, March 20, 2009

किसका कसूर है ये....


अभी कुछ दिन पहले ही मैंने भडास पर पढ़ा की अजमेर में एक नवजात बच्ची लावारिस मिली...जिसकी बाद में अस्पताल में मौत हो गयी...!इस को पढ़ कर मैं रात भर सो नहीं पाया...!आखिर क्यूँ ऐसे हालात.. बन जाते है की माँ बाप को अपनी ही संतान को त्यागना पड़े..?कोई कैसे अपने जिगर के टुकड़े को इस तरह छोड़ सकता है.?और वो माँ तो सबसे ज्यादा बदनसीब है जो ९ महीने तक अपने पेट में पाल कर..उस बच्चे को इस दुनिया में २ मिनट भी न पाल पाए...?वो इतनी निर्दयी कैसे हो सकती है...?आखिर वो बच्चा उसके लिए एक बोझ.. क्यों बन जाता है...जिसकी एक किलकारी से..सारा जग रोशन हो जाता है!इस पीडा को तो वो माँ बाप बेहतर समझ सकते है..जिनके कोई बच्चा नहीं है..!मात्र एक बच्चे के लिए वो दर दर भटकते है....!वो कोई मंदिर,मस्जिद,गुरुद्वारा और मजार जाना नहीं भूलते...बस किसी तरह भगवन उनकी गोद हरी कर दे...!एक संतान की चाहत में न जाने कितने व्रत...रखते है..!कहाँ कहाँ नहीं जाते....!और एक ये माँ थी जिसने ना जाने किस मजबूरी में अपने ही खून को तनहा अनाथ छोड़ दिया...और बच्ची ने.. अपनी जान देकर माँ बाप की गलती की सजा पाई...! ये घटना हम सब को सोचने पर विवश तो करती ही है.साथ में समाज के लिए एक सबक भी है...

Tuesday, March 17, 2009

जिंदगी और बता तेरा इरादा क्या है...?

ये दुनिया भी अजीब है...भगवन किसी को तो बिन मांगे ही सब कुछ दे देता है,और किसी को लाख कोशिशों के .बाद..भी कुछ नहीं मिलता....!ऐसा ही किस्सा है ..गुड्डी और छोटू का...!कोई दिन ऐसा नहीं बीतता जब ये बच्चे प्राथना सभा में पुनीश्मेंट नहीं पाते....क्यूंकि इनके पास ना तो ..युनिफोर्म....होती और न ही किताबें ,पेन,पेन्सिल आदि...!हमारे यहाँ सरकारी स्कूल में किताबें तो फ्री मिल जाती है और फीस भी ना के बराबर है...लेकिन फ़िर भी बच्चों को कापियों आदि की जरुरत पड़ती ही है...!कई बार बुलाने पर एक दिन उनके पिताजी ..आए ..जो लगभग अधेड़ उमर एक गरीब आदमी था..जो हमारे कुछ कहने से पहले ही लगभग रो सा पड़ा.....!वो एक दुखी इंसान था..उसकी पत्नी जन्म..से ही अंधी थी.वह किसी तरह मजदूरी करके घर का खर्च चला रहा था....!पत्नी कुछ काम कर नही पाती थी ..सो बच्चों को नहलाने धुलाने से लेकर खाना बनाने तक के सारे काम उसे ही करने पड़ते थे....!इस चक्कर में वो कई बार काम पर भी नहीं जा पाटा...था...सो वो नुकसान अलग से..!.उस की....कहानी.... सुन कर हमारे स्कूल ..का पूरा स्टाफ बहुत शर्मिन्दा हुआ..!उस दिन से हमने गुड्डी और छोटू को उसी रूप में सवीकार लिया...!हम जहाँ तक सम्भव होता उनकी मदद भी करने लगे....!लेकिन ये भी इश्वर को कहाँ पसंद आया..एक दिन आवारा पशुओं ने उनके पिता की जान ले ली...!और वे अनाथ हो गए...उनका एकमात्र सहारा भी छीन गया...!माँ अंधी थी...इसलिए घर का कामकाज भी रुक सा गया....!गुड्डी और छोटू की पढ़ाई भी छूट गई...और हम चाह कर भी कुछ ना कर सके...!...आख़िर ये कैसा इम्तिहान ले रहा था .भगवान् भी..?????

Thursday, March 12, 2009

जैसा बोया..वैसा पाया....

जो जैसा बोयेगा वो वैसा ही पायेगा...ये बात पकिस्तान पर बिल्कुल फिट बैठती है...!उसने आज तक जो बोया ...उसकी फसल अब कट रही है...!जिन आंतकवादियों को उसने दूसरो के लिए तैयार किया वे अब उसी को नुक्सान पहुंचाने लगे है...!आज पाकिस्तान बारूद के एक ऐसे ढेर पर ..बैठा......है जिसमे कभी भी विस्फोट हो सकता है.और ये विस्फोट उसके पाले हुए आंतकवादी ही करेंगे...!लेकिन ये .सब..भारत के हित में नहीं होगा...!एक कमजोर पाकिस्तान हमारे लिए एक मजबूत दुश्मन साबित हो सकता है...!आज वहाँ के हालात इतने बिगड़ चुके है की सब पार्टियाँ...अपनी अपनी ढफली बजाने में लगी है...पर सेना अब भी आंतकवादियों का समर्थन कर रही है...

Saturday, March 7, 2009

उसने मुझे जीना सिखाया.....

देश के करोड़ों नौजवानों की तरह जब मैं भी रोजगार के लिए संघर्ष कर रहा था..!एक प्राइवेट स्कूल में पढाते पढाते जब मैं कोल्हू के बैल की तरह थक चुका था..और जिंदगी से हार चुका था ..तभी मेरी जिंदगी में एक बच्चा आया जिसने मेरी विचारधारा ही बदल दी!अब वही जीवन मुझे .अच्छा लगने...लगा था..जिससे कभी मैं तंग हो गया था...!हाँ...वह था एक बालक....'पारस'....!सातवीं में पढने वाले बच्चे .ने...मुझे इस तरह से प्रोत्साहित किया की..मैं उन अँधेरी गलियों से निकल कर एकदम से उजाले में आ गया..!जहाँ मेरे सामने बहुत से रास्ते खुल गए थे...!उसने मुझे वो अपनापन दिया.जिसके लिए सब तरसते है..और करोड़ों रुपये .खर्च...करके भी जो .खुशी...खरीदी ना जा सके..वो खुशी मुझे उस बच्चे ने अनायास ही दे .दी..जिससे .मैं फ़िर से एक्साम देने लगा और आज सरकारी सेवा में कार्यरत हूँ....!जब एक आदमी पूरी तरह से टूट जाता है तो उसे जरुरत होती है...नैतिक समर्थन की और मैं आज ये सोच कर हैरान हूँ की उसने .ये कर के दिखाया...!उसने मेरे .वय्कितव....को एक नई दिशा दी...!तभी मैंने जाना की किस प्रकार से एक बच्चा भी हमारा जीवन बदल सकता है...!मैं आज भी .अहसानमंद हूँ....

Friday, March 6, 2009

हम तो खेलेंगे होली.....

आजकल पूरे देश में एक अभियान चल रहा .है...की होली मत ,खेलो...क्यूंकि इससे पानी की बर्बादी होती है..!मैं इससे सहमत नहीं हूँ..क्यूंकि एक तो तायोंहरों का महत्त्व वैसे भी कम हो गया है..और फ़िर रही सही कसर ये अभियान पूरी कर रहे है.!मुझे अच्छी तरह से याद है की ,किस तरह दिवाली पर भी ऐसा ही हुआ था...पटाखे न चलाओ ...प्रदुषण होता है...!तो क्या हम अपने रीति रिवाज़ भूल जाएँ...त्योंहार न मनाए...????तो क्या करें .??क्या..हमारे बच्चे इनके बारे में केवल किताबों में पढेंगे...?पिछले कुछ समय से ये साजिश सी हो रही है....इन त्योंहारों को भुलाने और विदेशी त्योंहारों को हम पर थोपने की.....!क्या आप को याद आता है की किस तरह से velentine.............डे को यहाँ एक बड़ा उत्सव बना दिया गया है ...इसी तरह कभी फादर्स डे तो कभी मदरस डे को महत्त्व दिया जाने लगा है....!इसलिए हमने तो निर्णय लिया है की हम तो खेलेंगे होली...और आप....?????

Wednesday, March 4, 2009

बेटियां.. क्यूँ समझे पराई....



जब भी किसी युवा जोड़े की शादी होती है तो उनकी आंखों में कितने अरमान होते है!जीवन की वास्तविकताओं से उनका पहला सामना तब होता है जब घर में नया मेहमान एक छोटा शिशु आता है!उनके लिए ये कोई मायना नहीं रखता की वह लड़का है या लड़की?वे उसे प्यार करते नही थकते....लेकिन यहीं से सब कुछ बदलना शुरू हो जाता है!यदि शिशु लड़की है तो अचानक बहुत से बुद्धिजीवी आ धमकते है जो माता को बार बार ये अहसास कराते है की ये लड़की है ..ध्यान रखो...!अब माता .पिता को ये लोग गाहे बगाहे ये टेंशन देते रहते है...लड़की को ज्यादा सर न चढाओ,इसके कपडों पर ध्यान दो,आख़िर ये लड़की है,ज्यादा मत .पढाओ......आदि..आदि...!सबसे ज्यादा समस्या तो .तब...खड़ी होती है..जब कोई महिला कार्यक्रम हो!यहाँ तो लड़की के माता पिता को इस तरह से ..दबाया....जाता है जैसे उन्होंने लड़का पैदा ना करके कितनी बड़ी भूल की हो?लड़कियां हमारी शान है..वो वे सब काम करके दिखा रही है,जिन पर कभी पुरुषों का आधिपत्य था....!बोर्ड एक्साम में लड़कियां हमेशा आगे रहती है..इसकी मिसाल के तौर पर बहुत लम्बी लिस्ट है..!बुढापे में जब माँ बाप को सब छोड़ जाते है...जब सब लड़के मिल कर भी उन्हें pआल नहीं सकते..तब लडकियां पराया धन होते हुए भी माँ बाप से जुड़ी रहती और उन्हें खुशी देने का भरसक प्रयत्न करती है....फ़िर क्यूँ समझे उन्हें .पराई....?क्यों?..क्यों?...क्यों जनम से ही उन पर पराई का ठप्पा लगा दिया जता है.....क्यों उन्हें बार बार लड़की होने का एहसास दिलाया जाता है..!क्या किरण बेदी,कल्पना चावला,इंदिरा गांधी या..लक्ष्मी बाई.के लड़की होने का हमे अफ़सोस है?????यदि नहीं तो फ़िर अपने घर में लड़की होने पर थाली क्यों न बजाये....!क्यों न हम उन्हें वे सब सुविधाएँ देन जो लड़कों को देते है क्यूंकि एक लड़की ही तो किसी की माँ,बहिन,भांजी,भतीजी,भाभी या फ़िर प्रेमिका बनेगी ...क्या इन रिश्तों के बिना जीना .सम्भव है...?फ़िर क्यूँ समझे इन्हे पराई..... !


Tuesday, March 3, 2009

दिल ढूंढता है.....




दिल ढूंढता है.......
दिल ढूंढता है....... वो बचपन का ज़माना.....जब सब बच्चे मिल कर उछल कूद करते हुए स्कूल जाते थे...रस्ते में आने वाली हर चीज़ का भरपूर लुत्फ़ उठाते हुए...!फ़िर शुरू होता स्कूल का कार्यकर्म ..कब शाम हो जाती पता ही नहीं चलता था...!सब अध्यापक कितने अपनेपन से पढाते थे...कभी उनको हमने या उन्होंने हमे पराया नही समझा....!फ़िर शाम को गाँव के रेतीले धोरों पर देर तक खेलना..आज भी याद है जब माँ हाथ पकड़ कर ले जाती थी तो ही खेलना बंद करते थे..!रात को दादा-दादी के सानिध्य में पढ़ते पढ़ते सो जाते थे...वो रातें कितनी अच्छी थी...!अलसुबह सब बच्चों को उठा दिया जाता था...फ़िर सबके साथ चाय पीना और मस्ती करना....!नहा धोकर गाँव के मन्दिर में जाना कहाँ भूलते थे हम....और मंगलवार को तो शाम का खेल छोड़ कर भी मन्दिर के बहार बैठे रहते थे....प्रसाद जो लेना होता था...कोई किसी प्रकार की टेंशन या भेदभाव नहीं था....रात को देर तक गाँव की गलियों में घुमते हुए कभी हमे डर नहीं लगा...!कभी कभी जब दूर निकल जाते तो कोई भी बुजुर्ग अपने बच्चों की तरह ही हमें दांत देता...कभी किसी को बुरा नहीं लगा...!किसी के घर भी जब कोई शादी होती तो वहीँ सब खाना खाकर सो जाते..कभी काम से परेशान नहीं हुए ...!आज सब कुछ है लेकिन वो चैन वो आराम वो शान्ति नहीं है.........उसकी तलाश में यहाँ वहां भटकते है...पर तनाव है की पीछा ही नहीं छोड़ता.....इसीलिए तो किसी ने क्या खूब कहा है..... शायद फ़िर से वो तकदीर मिल जाए, जीवन का सबसे हसीं वो पल मिल जाए, चल फ़िर से बनाए वो .रेत..का महल,शायद वापस अपना वो बचपन मिल जाए.... [yeduniyahai.blogspot.com]

Monday, March 2, 2009

अब कुछ करे भी .पाकिस्तान...

मुंबई हमलों को इतना समय हो चुका है पर .पाकिस्तान...है की कुछ करना ही नहीं चाहता...आख़िर कब तक?हम यूँ ही उसके.सामने.झुकते...रहेंगे...वह ना समझा है ना समझेगा !अगर वाकई में उसे समझाना है तो भारत को कुछ ठोस कक्दम उठाने होंगे.!सबसे पहले तो हमे अपनी सुरक्षा को मजबूत करना होगा.फ़िर पाकिस्तान .के..आंतकी ठिकानों को निशाना बनाना होगा..अन्यथा वो हमें बार बार परेशान करता ही रहेगा...!अमेरिका में एक हमले के बाद दुबारा हमला नहीं हो सका क्यूंकि वे हमेशा के लिए सचेत हो गए...जबकि हम अभी तक आंतकवादियों से लड़ने की योजना ही बना रहे है...

Sunday, March 1, 2009

आखरी ख़त...

आखरी ख़त.....
आज कहीं पर एक रचना पढ़ी...अच्छी लगी इसलिए आप सब के सामने प्रस्तुत कर .रहा..हूँ.................................. पहचान को कोई नाम .ना...दो,स्वार्थ की ..seedhhi....................चढ़े रिश्ते,कभी आकाश की ख़बर नहीं रखते,चाय के प्याले में नहीं घुलेगी,हमारे दिलों की मेल,तेरा साथ एक ..नकली...सिक्के के अलावा कुछ भी नहीं,जो हर जगह जलील करता है,पथ के मुसाफिर जरूरी नहीं है,एक ही मंजिल के राही हो!तेरे ख़त के जवाब में बस इतना ही लिख रहा हूँ....!.