Thursday, November 6, 2014

जज़्बा हो तो ऐसा....

जज़्बा हो तो ऐसा.....
भूखे को अन्न और  प्यासे को पानी.देना ही बड़ी सबसे सेवा है ! जब मनुष्य द्वारा बेजान  देवी देवताओं की मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा की जा सकती है तो इन सजीवों में तो  प्राण प्रतिष्ठा खुद भगवान ने की है ....इन सब की सेवा ही सच्चा धर्म है ! इन्ही आदर्शों पर चलते हुए सरदार मोहन सिंह 50 सालों से  गरीबों की सेवा करते आ रहे है ! 82 वर्ष की  उम्र में भी वे एक्यूप्रेशर से लोगों के रोग ठीक करते है और जो भी आय होती है ,उसे गरीबों की सेवार्थ लगा देते है !रेलवे में अपनी नौकरी के दौरान उन्होंने डी आर एम ऑफिस बीकानेर के सामने 1964 में ठन्डे पानी के प्याऊ की शुरुआत की थी और यहीं पर हर गुरुवार ,शनिवार और अमावस को  ऐसे  बेसहारों को भोजन खिलाना शुरू  किया जिन्हे अक्सर  लोगों द्वारा  दुत्कार कर भगा दिया जाता है...!मोहन सिंह जी के अनुसार प्रभु की कृपा से पैसे की कभी कोई कमी नहीं आती ! लोग जुड़ते जाते है और सब व्यवस्था अपने आप होती रहती है ! सरदार जी की  चिकित्सा से ठीक होने वाले भी इस पुनीत कार्य में योगदान देते रहते है !बहुत से शिक्षाविदों ,डाक्टरों ,पुलिस अधिकारियों ,मिलिट्री अफसरों और संस्थाओं ने सरदार मोहन सिंहजी को प्रशस्ती पत्र  देकर सन्मानित भी किया है  और रुपए,खाने पीने की वस्तुएँ आदि भी दान देते रहते रहते है !यहाँ तक कि  अतिक्रमण  हटाओ अभियान में जब इस प्याऊ को भी 2011 में तोड़ दिया गया तब भी सरदार मोहन सिंह जी ने हार नहीं मानी और लोगों के सहयोग से पुनः जीर्णोद्वार करके इसे एक नया स्वरुप दिया ! ये प्याऊ आज भी    निरंतर  हज़ारों लोगों  की  प्यास बुझा रहा है !      


Wednesday, August 27, 2014

कैसी हो हमारी शिक्षा प्रणाली ??

कैसी हो हमारी शिक्षा प्रणाली ??
किसी भी बच्चे के जीवन का महत्व पूर्ण अंग है -शिक्षा ! शिक्षा ही उसके भवि जीवन का आधार होती है ,शिक्षा से ही वो आगे बहुत कुछ ज्ञान अर्जित करता है !बच्चे कि पहली शिक्षक होती है उसकी "माँ " !वही उसको सबसे पहला ज्ञान देती है ,कैसे खाना है,कैसे पीना है आदि और बहुत से संस्कार माँ ही बच्चे को देती है !अपने बच्चे को अपने कलेजे से लगा कर रखने वाली माँ फिर उसे एक दिन स्कूल छोड़ने जाती है !स्कूल में अपरिचित शिक्षक के पास अपने लाल को छोड़ते समय जो पीड़ा होती है,उसे एक माँ या फिर वो शिक्षक ही समझ सकता है !अपने बच्चे के भविष्य निर्माण के लिए माँ ये सब भी करती है !
अब बच्चा एक बिलकुल नए और अपरिचित परिवेश में अकेला होता है,लेकिन धीरे धीरे वो सबसे घुल मिल जाता है और फिर खुशी खुशी शिक्षा ग्रहण करने लगता है !विद्यालय उसका दूसरा घर और शिक्षक उसके अभिभावक बन जाते है !लेकिन क्या कहे आज की शिक्षण प्रणाली को जिसने इन विद्या मंदिरों को पैसा कमाने का एक साधन भर बना दिया है ,जहाँ सब कुछ पैसे के बदले मिलता है !भारी भरकम फीस देने के बाद स्कूल से ही पुस्तकें और कॉपी ,डायरी,स्कूल ड्रेस और ना जाने क्या क्या खरीदते रहो बस ! 
फिर अगले दिन भारी बस्ता और पानी कि बोतल उठाएँ बच्चा स्कूल टाइम से एक दो घंटे पहले घर से रवाना होता है और थका हारा छुट्टी के दो घंटे बाद घर पहुँचता है और खाना खाकर सो जाता है ,शाम को उठ कर होम वर्क करते करते उसे रात हो जाती है !
इतनी मेहनत के बाद भी वो सीखता क्या है ....सी फॉर केमल जबकि ऊँट को वो जानता है !इसी तरह से काउ,डॉगी,गॉट,लायन आदि पढ़ते हुए वो अपने मूल परिवेश से दूर् होता जाता है ! क्या यही है हमारी शिक्षण प्रणाली ? क्या ये सही है ? क्या हम कभी इसकी समीक्षा नही करेंगे ? क्या हमारे बच्चे इसी प्रकार कोल्हू के बैल कि तरह घूमते रहेंगे ? आज जरूरत है एक ऐसी शिक्षण प्रणाली कि जो बालक बालिकाओं को उनकी अपनी भाषा में  उनके परिवेश अनुसार शिक्षा प्रदान करे  !बच्चों के स्कूल बैग का बोझ कम करें और उसे तनाव मुक्त शिक्षा दे !