Monday, November 23, 2009

महाराष्ट्र को एक राष्ट्र बनने से रोकें......


पिछले काफ़ी समय से महाराष्ट्र एक राज्य नहीं बल्कि राष्ट्र की भांति .व्यहवार कर रहा है .इसे जानबूझ कर बढ़ावा भी दिया जा रहा है.अब ये मात्र एक भाषा का मामला नहीं है.महाराष्ट्र के कुछ नेता अनर्गल प्रलाप करते है तो बाकी सारे उनका आँख मींच कर समर्थन करते है.अब ये अनायास नहीं बल्कि सोच समझ कर किया जा रहा है.देखिये पहले उन्होंने हिन्दी पर हमला बोला,अब अपने राज्य के लिए क्षेत्रीय आधार पर नौकरियों में .आरक्षण मांग रहे है...गैर मराठियों पर गाहे बगाहे हमला बोल देना उनकी आदत बन चुकी है.इन सब से सपष्ट है कि अब उन्हें एक राष्ट्र कि भांति दिखना पसंद आने लगा है.पहले बाल ठाकरे और अब राज ठाकरे से लेकर मुख्यमंत्री तक को एक राष्ट्राधयक्ष की तरह प्रदर्शित करना बहाने लगा है,तभी तो इनके तेवर हमेशा चढ़े ही रहते है.लेकिन महाराष्ट्र से चली ये आग यदि पूरे देश में फ़ैल गई तो क्या होगा?आज़ादी से पहले जिस तरह देश अलग अलग टुकड़ों में बंटा था ,ठीक वैसी ही .परिस्थितियां फ़िर से पैदा की जा रही है.और इन सब के लिए जिम्मेवार हमारे नेता अपनी राजनीती चमकाने में लगे है.पहले राज ठाकरे को उकसाने वाली कांग्रेस अब ख़ुद उसकी भाषा बोलने लगी है...अपनी खोई साख बनने के चक्कर में बाल ठाकरे फ़िर से ज़हर उगल रहे है ,और बाकि तमाम लोग आँखें मींचे चुपचाप ये पाप होते देख .रहे है...ना जाने इस देश का क्या होने वाला है???

Wednesday, November 11, 2009

हिन्दी है हम.......


अब इस गाने को गुनगुनाने पर भी "मनसे" को आपत्ति हो सकती है !क्योंकि इससे पहले हम मराठी,पंजाबी ,राजस्थानी या कुछ और है !देश को एक सूत्र में पिरोनी वाली हिन्दी आज अपने हाल पर आंसू बहा रही है!हर देश की .एक ..भाषा होती है जिस पर पूरे देश को गर्व होता है क्योंकि यही हमारी पहचान भी होती है !परन्तु हमारे देश में देखिये किस तरह से हिन्दी का अपमान किया जा रहा है...!हिन्दी फिल्मों से पहचान बनाने वाले कलाकार भी किस बेशर्मी से अंग्रेजी में साक्षात्कार देते है!क्यों?किसलिए?जो लोग आपकी फिल्में देखते है वे हिन्दी जानते समझते है ,फ़िर दूसरी भाषाक्यों?यही हाल नेताओं और खिलाड़ियों का भी है!ये अंग्रेजी बोल कर ही खुश होते है!आजकल सभी सरकारी कार्यालयों और बैंक आदि में हिन्दी में काम करने का लिखा होता है,लेकिन क्या वास्तव में ऐसा होता है?दरअसल हिन्दी का अपमान हम स्वंय ही कर रहे है !

जब दूसरे देशों के .नेता भारत आते है तो .वे अपनी भाषा में ही बोलते है,और एक हमारे नेता है जो अपने देश में भी हिन्दी बोलने से हिचकिचाते है!आख़िर क्यों??यहाँ तक की स्कूली बच्चे भी इस नियम का बखूबी पालन करते दीखते है!और करे भी क्यूँ ना ,जब उनके सब बड़े ऐसा ही कर रहे है!बाज़ारों में सभी साइन बोर्ड अंग्रेजी में मुंह चिढाते दीखते है !आजकल .हिन्दी में अन्य भाषाओँ के बहुत से शब्दों को अपना लिया गया है ...फ़िर बोलने में कठिनाई क्यों?हम जब एक जगह से दूसरी जगह जाते है तो हिन्दी ही हमें आपस में जोड़ती है !ऐसी जगह जहाँ बहुत से प्रदेशों के लोग हो ,वहां हिन्दी ही उन्हें आपस में घुलने मिलने में मदद करती है!.फ़िर हिन्दी से ऐसा बर्ताव क्यों?और इस बार तो विधान सभा में ही हिन्दी का अपमान बहुत ही इज्ज़त से कर दिया गया!लेकिन सब खामोश है क्यों?क्यों नही दोषियों पर .राष्ट्र भाषा के अपमान का मामला चलाया गया?इस तरह तो देश एक दिन पुनः छोटे छोटे टुकडों में बंट जाएगा !इस देश को एक रखने के लिए हमें हिन्दी को .समुचित सम्मान देना ही होगा,जिसकी वो हक़दार है !हिन्दी को .इन राजनेताओं की राजनीती बनने से .रोकना होगा!हिन्दी जन जन की भाषा है और हमेशा रहेगी..!हमें इसका अपमान नहीं बल्कि सम्मान करना होगा!ये हमारी मजबूरी नहीं बल्कि नैतिकता है.....!जय हिन्दी!!!!जय .हिन्दुस्तान!!!!

Saturday, November 7, 2009

राज के बाद अब शिवराज...




ये तो होना ही था!राज ठाकरे ने जो .आग लगाई थी,वो तो बढ़नी ही थी !अब मध्यप्रदेश में भी शिवराज सिंह उसी राह .पर चल पड़े है! जब राज क्षेत्रीयवाद को भुना सकते है तो फ़िर शिवराज क्यों नहीं? महाराष्ट्र में राज की पीठ थपथपाने वाली कांग्रेस यहाँ विरोध कर रही है! ये देश की राजनीती में ..एक नया तूफ़ान .है इस तरह तो सभी राज्य अपनी अपनी डफली बजाने लगेंगे,जिसका सीधा नुक्सान देश की एकता को पहुंचेगा!क्षेत्रीय वाद की ये आंधी धीरे धीरे बढती ही जायेगी...!पर नेताओं को इससे क्या...स्व हित को देश हित से बड़ा मानने वाले ये नेता कभी भी ,कुछ भी कह सकते है! अभी कुछ दिनों पहले दक्षिणी राज्यों में भी हिन्दी .के खिलाफ खूब जहर उगला गया था,वंदे मातरम पर भी विवाद चल ही रहा हैआखिर हम देश को कहाँ ले जाना चाहते है?ये नेता लोग आख़िर कब .समझेंगे ?शायद कभी नहीं.....!जब पूरे देश में लोग मिल जुल कर रहते आए है और रह रहें .है तो फ़िर ये नेता क्यों सबको लड़ाने पर तुले है ....ये अपनी समझ से बाहर है.....