प्यार के कितने रूप होते है ये किसी को बताने की आव्सय्कता नहीं है......लेकिन आज इसे केवल प्रेमी और प्रेमिकाओं से जोड़ दिया गया है.हमारे देश में सदियों से प्रेम का इजहार सभ्य तरीकों से होता आया है जिसे समाज की मान्यता भी थी.कभी किसी ने मर्यादा तोड़ने की कोशिश नहीं की चाहे वो देवर भाभी का प्यार हो या कोई और....क्रिशन राधा के प्यार की कोई मिसाल नहीं मिलती....इसी तरह प्रेम के न जाने कितने रूप देखने को मिलते है....फ़िर हमें वैलेंटाइन दिवस की जरुरत कहाँ पड़ती है...क्यूँ मनाये हम इसे....!
विदेशों में जहाँ परिवार नाम क़ि संस्था टूट कर बिखर चुकी है,उन्हें ये नित नए दिन सूझते है ताकि कम से कम एक दिन तो वे प्यार से बिता सके!हमारे यहाँ क़ि संस्कृति इस तरह से भोंडेपन का विरोध करती है,तभी तो हमारे समाज में प्यार के सभी रूप विद्यमान है!रक्षाबंधन,भैया दूज आदि में दिखने वाले प्यार को क्या वेलेंटाइन डे में महसूस किया जा सकता है?इसीप्रकार अन्य त्योंहारों में भी सभी रिश्तों का अपना महत्त्व है!फिर क्यूँ हम शालीनता क़ि बजाय बाजारू प्रेम दिवस को अपनाएं? आज जरूरत इस बात क़ि है क़ि हम बच्चों को रिश्ते नाते समझाए,ना क़ि उन्हें पूरे साल का प्यार एक दिन में सिमटाना सिखाएं!!!
6 comments:
बहुत-बहुत धन्यवाद
आज जरूरत इस बात क़ि है क़ि हम बच्चों को रिश्ते नाते समझाए,ना क़ि उन्हें पूरे साल का प्यार एक दिन में सिमटाना सिखाएं!!!
Bilkul sahi farmaya!
मनानेवाले को भी नहीं रोकना है
और न मनानेवाले को भी नहीं रोकना है!
सब स्वतंत्र हैं!
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कह रहीं बालियाँ गेहूँ की - "वसंत फिर आता है - मेरे लिए,
नवसुर में कोयल गाता है - मीठा-मीठा-मीठा! "
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संपादक : सरस पायस
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत बढ़िया लिखा है उम्दा रचना
i am very impressed to know ur views about our indian festivals.
nice written
u r right ,sir
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