पग पग संघर्ष करती है बेटियां... अजन्मी ही मरती है आज बेटियां... । कुछ न पाने की चाह में फूल सी खिली... आजन्म खुशबू बिखेरती है बेटियां.... बेटों की अभिलाषा में जीने वालो... बेटों से बढ़ कर होती है बेटियां... घर की या बहार सकी हो दुनिया,, विभिन् रंगों से संवरती है बेटियां॥ । पत्नी से माता बन,भाई की बन के बहना॥ । सभी रूपों में दर्द को सहजती है.बेटियां... चुनोतियों के हार पहन,ना हारने वाली... वक्त के हर साँचें में ढलती है बेटियां...
5 comments:
बहत सुन्दर रचना है।
बेटी के अनेक रूपों का सुंदर चित्रण किया आपने।
बहुत सुन्दर रचना....
aapne bahut achchhi rachna likhi hai....
आपकी कविता पढ़ कर अजहर हाशमी की कविता याद आती है -
बेटियाँ शुभकामनाएं हैं, बेटियाँ पावन दुआएं है |
बेटियाँ गुरु ग्रन्थ की वाणी,बेटियाँ वैदिक ऋचाएं हैं ||.
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