Sunday, May 17, 2009

किसकी सरकार है ये..?

पूरे देश के चुनाव परिणाम घोषित ओ गए है और एक दो दिन में नई सरकार का गठन भी हो जाएगा..!लेकिन यहाँ एक सवाल उठता है की ये सरकार क्या सब जनता का .प्रतिनिधितव करती है..?क्यूंकि एक मामूली सी बैठक के लिए भी कोरम पूरा होना जरूरी होता है!जबकि यहाँ तो आधे लोगों ने तो वोट ही नहीं दिया..!जो भी सांसद जो आधे से भी कम लोगों की .पसंद..हो,वो क्या हमारा नेता हो सकता है?ये बात विचार करने योग्य है की कैसे वो सांसद .सब लोगों की पसंद बन .पायेगा..जब उसे .२० परतिशत...मत मिले हो?निश्चित तौर पर ये हमारी ...व्यवस्था....की खामी है जिस पर ध्यान देना आवयश्क है....आज यह समय की मांग है की या तो मतदान अनिवार्य करें या फ़िर जीतने के लिए कम से कम ३६ प्रतिशत वोट प्राप्ति की अनिवार्यतया लागू करें?जब एक विद्यार्थी ३६ प्रतिशत से कम अंक लाने पर फ़ैल हो जाता है तो फ़िर नेता २० प्रतिशत अंक लाकर भी कैसे पास हो जाता है ?एक सुझाव ये भी है की मतदान करने वालों को प्रोत्साहित किया जाए ताकि अधिक से अधिक लोग मतदान में भाग ले..!करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी यदि सरकार ४० से ५० प्रतिशत .मतदान करवा पाये तो उसमे भी जीतने वाले को कितने प्रतिशत मिले?ये आप भी सोचिये...!

16 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

ये सरकार देशी-विदेशी पूंजीपतियों और भूस्वामियों की है।

hem pandey said...

प्रणाली इस प्रकार की है कि सांसद जनता के सच्चे प्रतिनिधि नहीं कहे जा सकते. लेकिन फिलहाल कोई विकल्प भी नहीं है.

डॉ महेश सिन्हा said...

प्रजातंत्र की ये व्यथा है. असल में कोई भी वाद या तंत्र आम आदमी तक नहीं पहुँच पाया

रश्मि प्रभा... said...

बात तो सही है....

Prem Farukhabadi said...

आपके विवेक की दाद देनी पड़ेगी.लेकिन बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा.
आपको बधाई .

संगीता पुरी said...

जनता वोट नहीं देते .. तो यह उनकी गलती है .. और जहां तक नियमों को परिवर्तित करने की बात है .. संसद में बैठे लोग अपने हिसाब से नियम बनाएंगे .. न कि जनता के हिसाब से।

हरकीरत ' हीर' said...

वाह..वाह...३६ और २० अंक का अच्छा जोड़ घटाव पेश किया आपने....!!

रंजीत/ Ranjit said...

Sawaal sahi hai, lekin upay kya hai ?

अनुपम अग्रवाल said...

विकल्पों के लिये खुली बहस होनी चाहिये .

दिगम्बर नासवा said...

३६ प्रतिशत की बात तो ठीक है..............पर यदि नहीं आये तो..............क्या दुबारा.........फिर तिबारा चुनाव...........

Mumukshh Ki Rachanain said...

वोट देना अनिवार्य करने के पहले मत पत्र में "इनमें से कोई नहीं" का भी स्थान होना चाहिए ताकि खड़े होने वाले नेताओं को जनता की वास्तविक पसंद का अंदाज़ तो हो, अन्यथा एक नागनाथ जायेंगे तो दूसरे सापनाथ को ही चुनना मजबूरी होगी.

आभार.

चन्द्र मोहन गुप्त

www.dakbabu.blogspot.com said...

बहुत सुन्दर लिखा आपने..बधाई !!
_____________________________
आपने डाक टिकट तो खूब देखे होंगे...पर "सोने के डाक टिकट" भी देखिये. मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!!

Arvind Singh Sikarwar "AZAD" said...
This comment has been removed by the author.
Arvind Singh Sikarwar "AZAD" said...

वन्दे मातरम
परिहार जी
आप जो लिखते हैं वह तो तारीफ-इ-काबिल है ही
मगर आपकी चिंतन शक्ति अद्भुत है
आपने जिन मुद्दों पर लिखा है उन पर चिंतन करना समाज का निश्चित दायित्व है .
बहुत खूब
आपका विषयों का चुनाव भी सुम्हान अल्ला
हम आपके छोटे भाई हैं सो तारीफ क्या लिखें मगर आपके lekh पड़कर अत्यंत हर्ष हुआ वन्दे मातरम

Sajal Ehsaas said...

sach kahoon to vote dena ek zimmedari lagti hi nahi.kuch galti humari bhi hogi..meri umr 21 ki ho gayi hai aur maine voter id card nahi banwaaya...shayad dil se zaroorat nahi mahsoos huyee...jaisa hai,sach yehi hai!!

www.pyasasajal.blogspot.com

Hamara Ratlam said...

बिल्‍कुल ठीक लिखा है लगभग यही बात हम भी उठाना चाह रहे हैं। एक नज.र देखें
लोकसभा में किसे चुनें।