आजकल जिस तेजी से हमारा समाज और संसार बदलता जा रहा है उससे सबसे ज्यादा विचलित आज के युवा हो रहे है...!वे बदलते परिवेश,तकनीक...और सामाजिक ढांचे से तालमेल नहीं बिठा पा रहे....!सही मायनों में वे अपने आप को .एडजस्ट......नहीं कर पा रहे....!सब कुछ इतनी तेजी से बदल रहा है कि उनकी सोचने समझने कि शक्ति भी कम हो गई...इसलिए उन्हें जो ठीक लगता है ,वो करते है..!यानी उनकी नज़रों में जो सही है,वही सही है..!वे अपनी जिंदगी में किसी कि दखल अंदाजी पसंद नहीं करते..!अपना जीवन वो अपने तरीके से जीना चाहते है..!वे अपनी मर्ज़ी के मालिक है...!अपने ढंग से खाना पीना,रहना और मस्ती करना वे अपना हक मानते है....और इस मामले में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के युवाओं कि एक ही राय है,मत है!!ना जाने ये सारे के सारे किन नियमों को फोलो कर रहे है...!आपके पास से ये मुंह पर कपड़ा बांधे निकल जायेंगे और आप इन्हे पहचान नहीं पाएंगे....यही इनका स्टाइल है...ऐसे ही ये करना चाहते है...!लेकिन ये रास्ता उनको कहाँ ले जा रहा है ये उनको ख़ुद नहीं पता....!इसी राह पर चलते चलते अक्सर ये भटक भी जाते है....फ़िर सब गँवा कर होश में भी आए तो क्या?अपना करियर और जीवन तबाह करके क्या हासिल होगा?आज का युवा अपराध,नशे और अन्य ग़लत कामों से जुड़ता जा रहा है.....उन सब को ये समझ लेना चाहए कि इसका अंत इतना बुरा है ...जो कोई भी इंसान नहीं चाहता...!इन ग़लत ...धंधों में जाने के तो अनेक रस्ते है लेकिन .बाहर...निकलने का एक ही रास्ता है...वो है मौत..!इस लिए आज सभी अभिभावकों की भी ये जिम्मेवारी है कि वो अपने बच्चों को एक दोस्त कि तरह ही समझाये न कि डांट डपट ...कर क्यूंकि एक ग़लत फैसले से उसका भविष्य बरबाद हो सकता है...!
14 comments:
कभी-कभी नरक के द्वार की सुन्दरता हमें अंधा कर सकती है! इससे बचने के लिए कुछ सच्चे उदाहरण दवा का काम कर सकते हैं।
bahut hi sahi hai ........hamesha se hi galat chije manmohak hoti hai
अरे भाई ये बदलते युग का करिश्मा है, दुनिया मैं आकर नशा, ड्रग्स नहीं लिया तो क्या किया, और एक दिन ऐसा करते करते उम्र रह जायेगी २५ साल, और २५ साल मैं दादा पडदादा बन जायेंगे!!! Be Cool !! take it easy !!
aapki post padhne ke baad pata chala ki sthiti itni khatarnaak hai...
Warna hum to samajh rahe the sab theek thaak hai.
Yuvaaon ke sir per koi alag se seeng nahin hote hein, aur na hi woh baaki peedhi ke yuvaon se itne alag hein.
Yuvaon ke bhatkne kee itni chinta na kare. Sab theek thak hai, :-)
बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने और बिल्कुल सही फ़रमाया!
वे अपनी मर्ज़ी के मालिक है...!अपने ढंग से खाना पीना,रहना और मस्ती करना वे अपना हक मानते है..mai ise ekdam galat to nahi manta par agar isakaa prabhaaw society par negative padta hai to....ise badlne ki jarurat hai.....
आपने बिल्कुल सही और सटीक बात लिखी है ।
Sahi salah. aaj ke yuvaon ke liye...
लाजवाब प्रस्तुति....ढेरों बधाई.
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आयें मेरे "शब्द सृजन की ओर" भी और कुछ कहें भी....
rajnish ji,
bahut sahi bat kahi hai aapne...
बहुत सटीक और सार्थक रचना है शायद इसका एक बडा कारण एकल परिवार व्यवस्था और मा बाप दोनो का नौकरी करना भी है जिस से वो बच्चों पर प्रयाप्त ध्यान नहीं दे पाते तीसरा हमरे eटी वी चैनल्स मे परोसी जा रही सामग्री भी है जिस्मे अपने देश की संस्कृति का कहीं नामो निशान नहीं है बहुत बडिया पोस्ट है
HAMESHA SE HI YUVAON KO PRODH SE AUR BUZURGOON KO YOUVAAON SE DIKKAT RAHI HAI...
YAHI DADA JI KE ZAMANE MAINHOTA THA, PAPA KE ZAMANE MAIN HUA,
AB HAMARE ZAMANE MAIN HO RAHA HAI...
"GENERATION GAP" YOU SEE !
"एक ग़लत फैसले से उसका भविष्य बरबाद हो सकता है"
आप की बात एकदम सही है....
आज की एक ज्वलंत समस्या की ओर आपने इंगित किया है.इसके कारकों में कुछ का उल्लेख निर्मला कपिला जी ने किया है. दर्शन साह जी ने जेनरेशन गैप की बात कही है. वह पहले की अपेक्षा अब बढ़ गया है. कम्युनिकेशन गैप को कम कर के और पारिवारिक माहौल को बढ़ाने से कुछ लाभ हो सकता है.
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