Tuesday, December 1, 2009

शिक्षा को रोज़गार से जोड़ना होगा...




आज गली गली में स्कूल कालेज खुल गए है..सरकार की प्रोत्साहन नीति के चलते शिक्षा का खूब प्रचार प्रसार हो रहा है.लेकिन क्या ये शिक्षा रोजगार दिलाने में सक्षम है?शायद..नहीं ,क्यूंकि हमने कभी भी अपना शिक्षा तंत्र बनाने की कोशिश नहीं की। बस अंग्रेजों के बनाए तंत्र में ही कुछ फेरबदल कर दिया है.उसी का परिणाम है कि आज हम शिक्षा तो .उपलब्ध करवा रहे है लेकिन नौकरी नहीं.हमारी शिक्षा नौकरियों के मामले में सही नहीं है.इसके लिए हमें शिक्षा प्रणाली में बदलाव करना होगा।


आज की शिक्षा केवल डिग्री दे रही है..जिसका भी कोई महत्त्व नहीं है.हमें आज हमारी शिक्षा को रोज़गार मुखी बनाना होगा.आज जरूरत इस बात की है कि हम स्कूल ..लेवल से ही रोजगार से जुड़े पाठ्यक्रम शुरू करें ताकि बच्चे समय रहते ही अपने रोजगार को चुन सके और उसमे पारंगत हो सके.आज हजारों बच्चे .प्राइमरी के बाद पढ़ना छोड़ देते है.ये बच्चे स्कूल छोड़ कर किसी ना किसी रोजगार को .अपनाते है.यही काम अगर हमारी शिक्षा देने वाली संस्थाएं करने लग जाए तो कोई बच्चा स्कूल छोड़ कर नहीं जाएगा.स्कूल में केवल किताबी ज्ञान देने से कुछ नहीं होने वाला,हमें इसमे रोजगार से जुड़े पाठ्यक्रम .प्रारम्भ करने होगे.बच्चे को उसकी रूचि का पाठ्यक्रम चुनने की आज़ादी देनी होगी ,ताकि वह अपनी पसंद का रोज़गार कर सके।


आज कितने ही निजी संस्थान रोज़गार सम्बन्धी कोर्स चला रहे है,यही काम हमारी शिक्षा संस्थाएं भी बखूबी कर सकती है.इससे स्कूल छोड़ने की नौबत नहीं आएगी और बच्चे अपने पैरों पर भी खड़े हो सकेंगे.प्राचीन काल में गुरुकुल शिक्षण पद्धति इसी उद्देश्य को ध्यान में रख कर बनाई गई थी.वहां बच्चे शिक्षा के साथ साथ अन्य कलाओं में भी पारंगत .होते थे इसीलिए वे गुरुकुल से निकलने के बाद अपने अपने रोजगार में लग जाते थे.शिक्षा को रोजगार मुखी बनाने से जहाँ साक्षरता का प्रतिशत बढेगा ,वहीँ नौकरियों ,रोजगार की भी कमी नहीं रहेगी.....[फोटो गूगल से ]

13 comments:

संजय बेंगाणी said...

अक्षर ज्ञान के अतिरिक्त 15-20 वर्ष खर्च कर व्यक्ति क्या सीख रहा है? रटो और पास हो जाओ....व्यवस्था बदलना बहुत जटिल व श्रमसाध्य काम है अतः परिवर्तन की आशा करना बेकार है.

रश्मि प्रभा... said...

आज की शिक्षा पध्धति में पढाई कम है.... पढ़ानेवाले खुद नहीं जानते-क्या पढाना है !

संगीता पुरी said...

सिर्फ अधिक से अधिक नंबर लाओं .. कंपीटीशन पास करो .. कोई व्‍यावहारिक ज्ञान नहीं .. कोई जीवन नहीं .. बच्‍चों की परेशानी को समझने की फुर्सत किसे है ??

मनोज कुमार said...

आपकी बातों से बिल्कुल सहमत हूँ।

Urmi said...

बहुत बढ़िया लिखा है आपने! आजकल स्कूल में शिक्षा बिल्कुल बदल चुका है! शिक्षक को ठीक से ये पता नहीं की बच्चों को क्या पढाया जाए और बच्चे भी पढ़ाई में बहुत कम ध्यान देते हैं! आज के ज़माने में चारों तरफ़ सिर्फ़ कंपीटीशन है और अच्छी शिक्षा अगर न मिले तो फिर आगे चलकर कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा!

दीपिका said...

aaj siksha ek vyapaar ho gaya hai. siksha ka matlab rojgaar dilana nahi waran insaan banana hota hai, jis mein wo aaj puri tarah se fail dikhta hai.

kabhi mere blog par bhi aakar mera maarg-darshan karein.

VISHWANATH SAINI said...

शिक्षकों को पढ़ाई की बजाय खुद के भविष्य की चिंता सताती रहती है। शिक्षक समानीकरण, पदोन्नति व प्रतिनियुक्ति की आड़ में मनचाही स्कूलों में जाने के लिए गोटियां फिट करने की फिराक में रहते हैं। ऐसे में स्कूली बच्चों का भविष्य क्या होगा। इसका अंदाजा सहज लगाया जा सकता है। सर जी, आपके विचारों से भी मैं सहमत हूं।

PRATEEK said...

good keep going

PRATEEK said...

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स्वप्न मञ्जूषा said...

यह आज नहीं हमेशा से हमारी शिक्षा प्रणाली यही रही है...हमने हमेशा ही पास होने के लिए ही पढ़ा...परीक्षा हॉल से बहार आते ही हम सब कुछ भूल गए...जो भी पढ़ा आज तक जीवन में वो लागू नहीं कर पाए...सच पूछिए तो अब तो याद भी नहीं क्या पढ़ा था...हमारे बच्चे एक सवाल पूछ देते हैं तो हम बगलों झाँकने लगते हैं....सबकुछ बदलना बहुत ज़रूरी है नहीं तो बस पीढ़ी-दर-पीढ़ी एक ही गलती दोहराते चले जा रहे हैं....
बहुत ही सार्थक आलेख ..
बधाई...

mark rai said...

very nice post .......aisha karna ab compulsory ho gaya hai ....

alka mishra said...

रजनीश जी ,आज आपने शिक्षा के जिस स्वरूप को लागू करने की बात कही है मैं उसका समर्थन करती हूँ १९९४ में मैंने एक अखबार में इसी बाबत एक लेख लिखा था ,काफी बड़ा लेख था जिसका सार ये था कि इस तरीके से शिक्षा व्यवस्था लागू होगी तो ज्यादा से ज्यादा २० वर्ष की उम्र के बाद जब बच्चा विद्यालय छोड़ेगा तो वो न केवल उच्च शिक्षित होगा बल्कि रोजगार से जुडा हुआ भी होगा ,मैंने पूरे १५ वर्षों का पाठ्यक्रम तैयार किया था खैर ...अब से ही चेत जाते लोग
आपने कायाकल्प औषधि के बारे में पूछा था ,देर से बताने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ
आप मुझे अपना पोस्टल एड्रेस लिख दें कुरियर या स्पीड पोस्ट से भेज दूंगी ,१५०० रु.की एक माह की दवा होगी पैसे आप हमारे एकाउंट में जमा करवा दें ,१००/- डाक व्यय जोड़ लीजिएगा
आप चाहें तो गूगल टाक पर बात भी कर सकते हैं ,मेरा फोन नो० तो ब्लॉग में लिखा ही है

AJEET SINGH said...

बहुत बढ़िया लिखा है आपने....सर जी, आपके विचारों से मैं सहमत हूं।....