सारा देश महंगाई से त्रसत है और सरकार कॉमन वेल्थ खेलों में व्यस्त है!क्या जरूरी है ये खेल? अगर हमारे पास उचित संसाधन नहीं थे तो हमें इस पचड़े में पड़ना ही नहीं चाहिए था!ऐसी झूठी शान किस काम की?और जैसे कोई कमी थी जो इसमें भी घोटाले पर घोटाले!शायद इसी लिए बड़ी रिश्वत देकर इन खेलों का आयोजन लिया गया!गरीबों के खून पसीने और रोटी से बने स्टेडियम आखिर हमारे किस काम के?हम अभी तक सब को रोज़गार,रोटी और मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध नही करवा सके, लेकिन यहाँ खेल गाँव बनाये जा रहे है !
क्या कलमाड़ी जी को पता नही कि हमारे देश में आज भी हजारों लोग फुटपाथ पर सोतें है,जिन्हें भी अक्सर पैसे वाले बिगडैल लोग गाड़ियों से कुचल देते है या फिर पुलिस वाले डंडा मार कर भगा देते है !जब हम उन्हें काम और मकान नही दे सकते तो ये खेल गाँव हमारे किस काम के !ऊपर से इन खेलों के नाम पर हजारों टेक्स जनता पर लाद दिए गए है !
गलियों से लेकर संसद तक हल्ला होने के बाद भी देश कि प्रतिष्ठा के नाम पर सरकार इनके आयोजन में जुटी है... आखिर इन खेलो से क्या हासिल होगा? खेल के क्षेत्र में भी कोई फायदा होने वाला नही है क्यूंकि अनेकों नामी गिरामी खिलाडियों ने इन खेलों में आने से इनकार कर दिया है!फिर अपना घर जला कर ये तमाशा किस के लिए?क्या सरकार को जनता के दुःख दिखाई नही देते?शायद नही???क्यों आखिर क्यों???
8 comments:
यथार्थ लेखन।
बहुत ही बढ़िया और सठिक लिखा है अपने! उम्दा पोस्ट!
भाई अब ओखली में सर दे ही दिया है तो मूसल भी सहन करने पड़ेंगे ।
शुभकामनाओं के लिए दिल से शुक्रिया ।
bahut hi acha laga apka post..
likhte rahiye....
Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....
A Silent Silence : Naani ki sunaai wo kahani..
Banned Area News : Hayek's daughter doesn't believe in Santa Claus
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,--;_/*******HAPPY INDEPENDENCE*_/*****.|*,/
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स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ !
kuchh bhi nahin jaroori hota...magar anankaar ke liye sab kuchh kiyaa jaataa hai...acchha likha hai aapne
जहाँ तक मेरी जानकारी है,किसी भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खेल का आयोजन आर्थिक दृष्टि से बहुत मुनाफे का होता है। अन्यथा,आयोजन के लिए इतनी प्रतिस्पर्धा नहीं होती। ऐसे आयोजन अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों के आपके सामर्थ्य को भी दर्शाते हैं और दुनिया भर में एक अच्छा संकेत जाता है। जनता ने जिन प्रतिनिधियों को चुना है,उनसे जनता वही पा सकती है,जो उन्हें मिल रहा है। अपनी जागरूकता की कमी और अधिकारों को जाया करने का ठीकरा सत्ताचक्र पर फोड़ने का रिवाज पुराना है।
उम्दा पोस्ट
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