शादी के बाद हर दम्पत्ति का सपना होता है -एक प्यारा सा बच्चा !!!एक बच्चा जो आते ही घर को खुशियों से भर देता है !उसके आने के साथ ही जैसे सारा वातावरण बदल जाता है ,उसकी मासूम हरकतों से पूरा घर आँगन महक उठता है !
लेकिन अगर बदकिस्मती से यही बच्चा मंदबुद्धि या विकलांग हो तो जैसे खुशियों को ग्रहण लग जाता है ,इसमें उस बच्चे की कोई गलती नही है फिर भी सजा अक्सर उसी को दी जाती है !उस बच्चे से तमाम वे खुशियाँ छीन ली जाती है जो अन्य बच्चों को दी जाती है !पर क्या ! उस बच्चे की स्थिति में उसका अपना कोई हाथ है? जाहिर है कि नहीं! फिर वह अपनी स्थिति, जो कि ईश्वर की देन है, की सज़ा क्यों भुगते? और सोचा जाए तो क्या इसमें किसी का भी दोष है? कौन माँ-बाप चाहेंगे कि उनकी संतान इस स्थिति में हो? यह स्थिति किसके लिए रूचिकर या फायदेमंद होगी? इन सभी सवालों के जवाब में शायद ही किसी को कोई संशय होगा लेकिन फिर भी आमतौर पर सभी लोग इन बच्चों को हेयदृष्टि से देखते हैं और हमारे समाज में इससे संबंधित कई भ्रांतियां भी प्रचलित हैं।लोग सोचते है की ये माँ बाप के पूर्व जन्मो के पाप का फल है???या फिर ये की इसकी तो किस्मत ही खराब है !
जबकि वास्तव में ऐसा कुछ नही है ...ये बच्चे भी सामान्य बच्चों की भांति जी सकते है बशर्ते हम थोडा सा उन पर ज्यादा ध्यान दे!इन को हिकारत नही प्यार भरी नज़रों से देखिये....जिस चीज की इन्हें आवश्यकता है वह है हमारा भरपूर प्यार व प्रोत्साहन इनकी जरूरत यह है कि हम इन्हें पूरी तरह से अपनाएं ओर इनके प्रति सकारात्मक रवैया रखें। क्या हममें से कोई भी संपूर्ण हैं? कमियां तो सभी में होती हैं। ऐसे में इन बच्चों का तिरस्कार करना क्या उचित है? किसी ना किसी रूप में ईश्वर की उपासना हम सभी करते हैं तो फिर ईश्वर की इस रचना की उपेक्षा करना क्या न्याय-संगत है? वह बच्चा जो अपनी जरूरत और इच्छा व्यक्त करने तक में असमर्थ है और वे अभिभावक जो तन-मन धन से अपने बच्चे की सेवा में लगे रहते हैं, क्या उपहास के पात्र है अथवा प्रशंसा व संवेदना के ?
यदि इन बच्चों को थोडा सा स्नेह मिले तो ये भी खुद को साबित कर सकते है ,लेकिन खुद उसके परिवार वाले असहज महसूस करते है और बच्चे से न्याय नही कर पाते...जिससे बच्चा और भी टूट जाता है ! ऐसे में उसे विशेष सहारे की जरूरत होती है ! ये बच्चे काफी कुछ सीख सकते हैं। इनकी सीखने की गति धीमी होती है अतः इनको कार्यात्मक शिक्षा दी जाती है जिससे ये दैनिक जीवन में आत्मनिर्भर हो जाते हैं तथा व्यावसायिक शिक्षा के द्वारा आर्थिक रूप से भी स्वावलंबी बन सकते हैं। जो लोग इन बच्चों के संपर्क में आए होंगे वे जानते होंगे कि ये बच्चे काम सीख लेते हैं उसे बहुत ही कायदे से करते हैं और अपने कार्य के प्रति पूरे ईमानदार होते है !
ऐसे ही बच्चों की सहायता करने का बीड़ा उठाया है ...उदयपुर के कुछ युवाओं ने ....
कोशिश:एक आशा -उदयपुर के कुछ युवा जब ऐसे बच्चों के संपर्क में आये तो वे रुक ना सके और उन्होंने फैसला कर लिया कि इनकी जो भी सहायता हो सकती है, वो करेंगे !उन्होंने एक संगठन बनाया और लग गए सेवा में !धीरे धीरे और भी युवा जुटते गये और आज "कोशिश एक आशा "के ६०-७० सदस्य इन बच्चों कि सहायता में जुटे है !आज ये संगठन ऐसे ही बच्चों के लिए कई कल्याणकारी कार्यक्रम चला रहा है
1 comment:
सार्थक लेख ।
बड़ा संवेदनशील मुद्दा है ।
वास्तव में इन बच्चों के साथ सहानुभूति के साथ एक सकारात्मक रवैया बहुत आवश्यक है । ताकि ये भी समाज में एक उपयोगी और सार्थक जीवन जी सकें ।
उदयपुर के युवाओं का प्रयास सराहनीय है ।
Post a Comment