Monday, February 16, 2009

पाप और पुन्य....

"बाबू जी"...घर से निकलते ही मेरे कानों में फ़िर .वही...आवाज़ .टकराई...!आज भी वह .बूढा....पेड़ के नीचे बैठा मुझे पुकार रहा था!बाबू जी एक रोट्टी का सवाल.......!मैं हमेशा की तरह बात पूरी सुने बिना ही आगे बढ़ गया!पिछले दो तीन दिनों से यही हो रहा था!मैं हमेशा की तरह किले के पास पहुँचा और कबूतरों को दाने चुगाने लगा फ़िर मन्दिर की तरफ़ निकलते हुए कुत्तों को रोटी भी .खिला दी!यही मेरा नित्य का नियम था!आत्थ बजते बजते वापस घर पहुँच गया!तैयार होकर जैसे ही आफिस के लिए निकला वैसे ही आवाज़ आई..."बाबूजी"!लेकिन ये आवाज़ उस .बूढे...की नहीं थी बल्कि कुछ अन्य लोगों की थी जो उसके अन्तिम संस्कार के लिए चन्दा इक्कठा कर रहे थे![दैनिक सीमा संदेश.लघु कथा प्रतियोगिता में पुरुस्कृत]

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