Wednesday, February 25, 2009

रिश्ते निभाइए......

अपने सुख की खातिर रिश्तों को बदनाम ना करें....
जब से दुनिया बनी है तब से ही हम न जाने कितने रिश्तों को निभाते आयें है या यूँ कहिये कुछ को तो बस नाम के लिए ही बनाए रखते है....और जब रिश्ते .बौझ....बनने....लगे तब आवय्क्सकता पड़ती है नए रिश्तों की.और अब तो ये .फेशन....सा बन गया है.इसी आपाधापी में लोग किसी से कुछ भी रिश्ता बना लेते है जो किसी ना किस्सी सवार्थ से .बंधा....होता है....ये रिश्ते अपने काम को निकालने के लिए ही बनाए जाते है इसलिए इनमे .गंभीरता....बहुत कम रह पाती है.इन रिश्तों की आड़ में लोग असली रिश्तों को भूल जाते है या भुलाने की चेष्टा करते हैजिससे कई तरह की समस्याएँ खड़ी हो जाती है....कोई किसी का भी भाई बना बैठा है तो किसी ने चार चार भाइयों के होते हुए भी किसी अन्य को भाई बना रखा है.फ़िर ऐ धीरे इन की आड़ में अनैकिकता का घिनोना खेल शुरू हो जाता है तो फ़िर इन रिश्तों की मर्यादा ख़तम हो जाती है...ये तथाकथित भाई बहन जहाँ असली रिश्तों को कलंकित कर रहे है वहीँ समाज में भी अनातिकता फैला रहें है

3 comments:

mark rai said...

ये रिश्ते अपने काम को निकालने के लिए ही बनाए जाते है इसलिए इनमे .गंभीरता बहुत कम रह पाती है.इन रिश्तों की आड़ में लोग असली रिश्तों को भूल जाते है.....
rajnish jee u r absolutely right.

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

रिश्ते कहीं हैं भी क्या...........मुझे तो पता भी नहीं.........कदम-कदम पर तो स्वार्थ का खेल ही देखता हूँ.......स्वार्थ के लिए रिश्ते........रिश्तों में स्वार्थ...........यही जीवन है शायद....!!

रचना गौड़ ’भारती’ said...

ब्लोगिंग जगत मे आपका स्वागत है
शुभकामनाएं
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहि‌ए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
www.zindagilive08.blogspot.com
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www.chitrasansar.blogspot.com