Tuesday, April 7, 2009

जूता नहीं है...ये...

चूड़ी नहीं है...दिल है... देखो ...ये गीत तो आपने सुना ही होगा..!ठीक वही आजकल जूतों के बारे में हो रहा है..!आजकल अभिव्यक्ति का नया मध्यम बन गया है...ये जूता..!जिसे देखो वो फेंक रहा है!लेकिन जूता फेंकने के पीछे भावना कुछ और ही होती है..!जैसे की बुश साहब पर जूता इराकी निति के कारण पड़ा जबकि मंत्री जी सफाई जरनैल सिंह जी को पसंद नही आई...!लेकिन एक बात जरूर अलग है वो ये की जरनैल जी शायद केवल एक संदेश देना चाहते थे .नहीं तो...कुछ भी हो सकता था...!जबकि बुश साहब पर तो जूते पूरे .वेग से .और दो बार फेंके गए थे...!पर एक बार फेंको चाहे दो बार...धीरे फेंको चाहे जोर से...मतलब की बात ये है की ऐसा हुआ क्यों???नाराजगी की बात तो ठीक है पर इसे जायज़ नहीं ठहराया जा सकता...!अन्तराष्ट्रीय समुदाय में देश की किरकरी होगी..सो अलग...!इसलिए तो कहा गया की भावनाओं पर .कंट्रोल.....रखना सीखो...नहीं तो कहीं ऐसा नहीं हो की अगली बार प्रेस कांफ्रेस में सभी को नंगे .पाँव..ही बुलाया जाए....[

6 comments:

Pawan Nishant said...

व्यंग्यात्मक लहजे में आपने काफी कुछ कह दिया है। पत्रकार बेचारे भी क्या करें, दूसरों के बारे में लिखते-लिखते उकता गए हैं, कभी तो हाईलाइट होने का मौका मिले।
पवन निशान्त

Ravi Singh said...

सीबीआई के द्वारा अपने छुद्र स्वार्थों के लिये उपयोग किया जा रहा है और हमारे देश का गृहमंत्री चुपचाप अपनी मूंडी ऊपर नीचे हिलाये तो क्या किया जाय?

जब बात बात से नहीं बने वहां लात जरूरी है

जूता मारो तान के
हर इक बेईमान के

mark rai said...

kuchh bhi ho virodh ka yah tarika mujhe pasand nahi...aise log hero bana diye jaate hai

परमजीत सिहँ बाली said...

जरा इस बात पर भी ध्यान दें की यह जूता पच्चीस सालों तक इन्तजार करने के बाद चला है।जब पच्चीस सालो तक शांती से प्रदर्शन करने वालों को ही गिरफतार किया जाएगा । तो कोई क्या करेगा? या तो अपने सिर पर जूता मारेगा या फिर......।

RAJNISH PARIHAR said...

aap sab ko THANX

कहो तो कह दूं said...

aapka blog padane mai nahin aa raha hai dash dash dikhai dete hai aap batlaye ki ise padane ke liye kya karoon
chaitanya Bhatt