Wednesday, August 12, 2009

भारत और इंडिया में बंटता देश.....



पिछले कुछ वर्षों में इस विभाजन को सपष्ट देखा जा सकता है!हमारा देश बहुत तेजी से बदल रहा है...लेकिन इसके दोनों चेहरे बहुत साफ़ साफ़ देखे जा सकते है!.पहला तो वह आधुनिक इंडिया है..जिसमे आसमान छूती इमारते है,साफ़ सड़कें और बिजली से जगमगाते शहर है..!सड़क पर दौड़ती महँगी गाडियाँ विदेश का सा भ्रम पैदा करती है!यहाँ लोग सूट बूट पहने शिक्षित है जो आम बोलचाल में भी अंग्रेज़ी बोलते है...!बड़े बड़े होटल ,माल और .मल्टी प्लेक्स किसी सपने जैसे लगते है..!यहाँ के लोग इंडियन कहलवाना पसंद करते है...!ये हमारे देश का आधुनिक रूप है जो एक सीमित क्षेत्र में दिखाई .देता है...!और इस चका चौंध से दूर कहीं एक भारत बसा है जो अभी भी मूलभूत समस्याओं से जूझ रहा है..!यहाँ अभी सड़कें,होटल मॉल नहीं है..बिजली भी कभी कभार आती है...!यहाँ के लोग सीधे सादे है जो बहुत ज्यादा शिक्षित नहीं है,इसलिए इन्हे अपने अधिकारों के लिए अक्सर लड़ना पड़ता है..!इस भारत और इंडिया को देख कर भी अनदेखा करने वाले नेता है जो हमेशा अपना हित साधते रहते है !लेकिन अफ़सोस इस बात का है की हमारी ७० %आबादी गाँवों में रहती है लेकिन इन भारत वासियों के लिए न फिल्में बनती है ना .कार्यक्रम ...!सभी लोग बाकि ३०% आबादी को खुश करने में लगे है....!तभी तो देखिये वर्षा न होने पर जहाँ लोग रो रहे है,सूखे खेतों को देख कर किसान तड़प उठते है...दाने दाने को मोहताज़ हो जाते है ..!वहीं ये इंडियन रैन डांस करने जाते है ..इनके लिए .कृतिम बरसात भी हो जाती है...!क्या कभी पिज्जा खाने वाले लोग उन भारतवासियों के बारे में सोचेंगे जो एक समय आज भी भूखे सोते है????क्या कभी हमारे नेता इन ऊंची इमारतों .के पीछे अंधेरे में सिसकती उन झोपड़ पट्टियों को देख पाएंगे जो इंडिया पर एक पाबन्द की भांति है....!इन में रहने वालों और गाँवों में रहने वालों में कोई अन्तर नहीं है.....!यहाँ बसने वाला ही सही भारत है जिसे कोई इंडियन देखना पसंद नहीं करता,लेकिन जब ये सुखी होंगे तभी इंडियन सुखी रह पंगे..पाएंगे...इस इंडिया और भारत की दूरी को पाटना बहुत जरूरी है....!ये दोनों मिल कर ही देश को विकसित बना सकते है....!

7 comments:

ओम आर्य said...

yah bilkul sahi hai ......aaj bhi bharat kai yugo ko ek sath ji raha hai..........badhaee

AJEET SINGH said...

भारत पर इंडिया दिनों दिन हावी होता जा रहा है...

बेरोजगार said...

आप मेरे ब्लॉग पर आये और मुझे पढ़ा.आप की टिप्पणी ने मेरा उत्साहवर्धन किया.

Urmi said...

बिल्कुल सही फ़रमाया आपने! बहुत बढ़िया लगा!

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

आप की बात एकदम सही है....विचारोत्तेजक और सोचने को मजबूर करता बहुत अच्छा लेख....बहुत बहुत बधाई....

shama said...

एक बात कहूँ ? हमें लगता है , इन झुग्गी झोपडियों में रहने वाले सुखी नही ..इन्हें वहाँ से हटा के ,अन्य जगह बसाने की तमाम कोशिशें नाकाम हुई हैं....इन्हें जो मकान दिए गए, जो टॉयलेट बनाये गए, इनमे आतंक वादी, अपने हथियार रखते हैं..ये लोग उनसे किराया लेते हैं॥!
हाँ... जैसे गाँधीजी ने कहा था असली भारत गाँव में बसता है ..तो हम ,एक ज़िम्मेदार नागरिक की तौरसे उसे बचा रहे हैं ? हमारे बुनकर आत्म हत्या कर रहे हैं ...क्या हम एक प्रण लेंगे ,कि , ये प्राचीन धरोहर हर हाल में बचा के रखें?
देशकी बढ़ती आबादी के लिए , वैयक्तिक रूपसे क्या हम अपना सहभाग देते हैं ? या केवल चर्चा कर , सरकारको दोषी ठहराते हैं ? हाथ पे हाथ धरे बैठे रह जाते हैं ?
एक प्रश्न मंच है, जिसका URL देती हूँ..अपने सकारात्मक सुझाव या सवाल वहाँ पेश करें तो आपका तहे दिलसे स्वागत है!

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shama said...

http://shama-shamaneeraj-eksawalblogspotcom.blogspot.com/

ये रहा एक खुला प्रश्न मंच ...अपने सवाल लेके ज़रूर पधारें ...सुझाव दें ...अपनी ,अपनी तौरसे , हम अपना , अपना सामाजिक सरोकार निभाएँ ! एक दूजे के साथ हाथ मिलाएँ!

"आईये हाथ उठायें हमभी ..हम जिन्हें रस्मों दुआ याद नही, रस्मे मुहोब्बत के सिवा कोई बुत कोई खुदा याद नही..."