Tuesday, January 12, 2010

क्यों ना हम अपना राष्ट्रीय खेल बदल दें..?

आज की हॉकी टीम जिन हालात में है उसे देख कर तो ऐसा ही लगता है!जब हम टीम की जरूरतें ही पूरी नहीं कर पा रहे तो फिर कैसा राष्ट्रीय खेल? शायद हमें क्रिकेट को नया राष्ट्रीय खेल घोषित करना चाहिए!क्रिकेट की एक मामूली घटना भी बड़ी खबर बन जाती है जबकि हॉकी की बड़ी खबर भी अखबारों के एक कोने में सिमट कर रह जाती है!सहवाग दो दिन तक दिखे नहीं तो ख़बरों में हलचल मच जाती है जबकि हॉकी खिलाडी तीन दिनों .से हड़ताल पर है ,पता है?जिस देश में राष्ट्रीय खेल का ऐसा अपमान हो की उसे प्रायोजक ही ना मिले?कोई खर्चा उठाने को तैयार नहीं हो?उसे किसी हालत में हमारा राष्ट्रीय खेल नहीं होना चाहिए !

                                                                                                    जिसतरह ताम्र पत्र से स्वन्त्रत्र्ता सेनानी अपना पेट नहीं भर सकता,उसी प्रकार राष्ट्रीय खेल के नाम मात्र से कोई खिलाडी अपना घर नहीं चला सकता!पर शायद ये बात सरकार को समझ में नहीं आती तभी तो क्रिकेट टीम के एक मैच जीतने पर करोड़ों रुपैये लुटाने वाली कोई कंपनी हॉकी की प्रायोजक बनने को तैयार नहीं है! फिर हम आखिर क्यूँ हॉकी को ढोतें फिरें?क्यों नहीं हम अपना राष्ट्रीय खेल ही बदल दें ताकि हमें रोज़ रोज़ शर्मिंदा ना होना पड़े?आज हॉकी खिलाडी अपने मेहनताने के लिए दर दर भटक रहें है,आखिर क्यों?

7 comments:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

अब राष्ट्रीय खेल बदल के क्या होगा... जो भी नया राष्ट्रीय खेल बनेगा उसका भी हाल हॉकी जैसा ही होगा... क्यूंकि राष्ट्रवादिता की भावना ख़त्म हो चुकी है ... मल्टिनैशनल हावी हो चुकीं हैं.... वो अपने हिसाब से मार्केट बना रही हैं.... बहुत अच्छी लगी आपकी यह पोस्ट...

Udan Tashtari said...

क्रिकेट को बना दें..फजियत होने से तो बचेगी...

ab inconvenienti said...

भारत में जो भी चीज़ राष्ट्रीय घोषित होती है उसका काम लग जाता है. जैसे बाघ राष्ट्रीय पशु बना तो वह लुप्तप्रायः हो गया. जैसे मोर, आजकल कहीं दिखाई नहीं देता. जैसे हाकी, मिट गई. जैसे गंगा (राष्ट्रीय नदी), अघोषित नाला बन गई. दिल्ली, राष्ट्रीय राजधानी, भारत का गन्दा और बदनुमा चेहरा.

इसी तरह क्रिकेट को राष्ट्रीय खेल बना दिया जाए तो यह भी जल्द ही मिट जाएगा. हां मच्छर को राष्ट्रीय कीट और गंदगी को राष्ट्रीय चरित्र घोषित करें तो कुछ बात भी बने.

वन्दना अवस्थी दुबे said...

बहुत बडा सच है ये. क्रिकेट के लिये जो दीवानगी है, वो हॉकी के लिये नहीं है. बहुत अच्छी पोस्ट.

मनोज कुमार said...

सही कहा आपने।

Anonymous said...

ये तो बिलकुल वो सुझाव है की नाच नहीं आवे तो आँगन टेढा /
आपकी रचना में छुपा दुःख और व्यंग का भाव पुरे शिद्दत से समझ में आता है / जनता गाफिल नहीं है खिलाडियों को भी ज्यादा नहीं तो कम तो दोष मै तो दूंगा ही क्यों की उन्होंने ने भी कोइ एसा कारनामा नहीं कर दिखाया की जनता भौचक्की रह जाये और तवज्जो देने पर मजबूर हो जाये / दोष जाती तौर पर आकाओं का है जो अपनी उदरपूर्ति के लिए खेल खेल में खेल का खेल बनाये हुए है /
पुनश्च , आप ज्यादाती देखकर चुप बैठने के आदि नहीं है और टोका टोकी करने के आदि है लिहाजा मेरे ब्लॉग पर सादर आमंत्रित है /
थैंक्स /

Urmi said...

बहुत बढ़िया लिखा है आपने! हाकी राष्ट्रिय खेल है हमारे देश का पर क्रिकेट का जैसा इतना क्रेज़ किसी भी खेल में नहीं है! मेरा तो पसंदीदार खेल क्रिकेट है!