सोनिया गाँधी राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् क़ी अध्यक्ष बन गयी है!नयी बात ये है क़ी चार साल पहले उन्होंने इसी पद को त्याग दिया था और कहा था क़ी वे राजनीती में केवल सेवा करने आई है ,सत्ता सुख लेना उनका उद्देश्य नहीं है!तब उनकी खूब वाहवाही हुई थी,किन्तु अब ऐसा क्या हुआ जो उन्हें इस पद क़ी जरूरत आ पड़ी!सत्ता पर उनका पूरा नियंत्रण है ही! कांग्रेस में उनकी मर्ज़ी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता!प्रधानमंत्री रबड़ स्टंप मात्र है!लेकिन फिर भी कुछ ऐसा है जिससे वे भयभीत है...
दरअसल राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् क़ी कोई ख़ास जरूरत भी नहीं है क्यूंकि प्रधानमंत्री कार्यालय और केबिनत के चलते इसकी कोई विशेष भूमिका नहीं है!परन्तु सोनिया येन केन ,हर हालत में पार्टी पर अपनी पकड़ मजबूत रखना चाहती है!उन्हें ये डर सताता है क़ि मनमोहन तो ठीक है पर कोई अन्य नेता पार्टी या संगठन में हावी ना हो जाये!इसी डर के चलते वे जहाँ राहुल को स्टेप बाई स्टेप आगे बढ़ा रही है ,वंही खुद पार्टी में सर्वेसर्वा बनी हुई है!किन्तु इन सब के चलते उन्होंने जो त्याग और बड़प्पन दिखाया था ,वो सब पीछे छूट गया है!
कभी महान नेताओं के लिए जानी जाने वाली पार्टी क़ी ये हालत देख कर तरस आता है!इसमें नेताओं का अकाल सा हो गया है !जो बचे है वो भी किसी तरह अपनी हैसियत बचाने में लगे है!सोनिया राहुल के बाद द्वितीय पंक्ति जैसे ख़त्म सी हो गयी है!राहत क़ी बात ये है कि बी जे पी खुद अपने आप से लड़ रही है!इसीलिए कांग्रेस अपनी नाकामिया छुपाती हुई सोनियामय होती जा रही है..
6 comments:
बिल्कुल सही कहा आपने .......बहुत बढ़िया पोस्ट
आप एक भूल कर रहें है कि इसे अंग्रेजों के जमाने वाली कॉंग्रेस मान रहे है. जनाब वह तो कब कि टूट गई. यह कॉंग्रेस आइ यानी इंदिरा है. इसकी मालकिन पहले इन्दिरा थी, बादमें उनके बेटे राजीव थे, अब बहू सोनिया है, बाद में पोता राहूल होगा. यह एक परिवारिक पार्टी है.
आपने बिल्कुल सही फ़रमाया है! उम्दा पोस्ट! अब तो सोनिया गाँधी का ही बोलबाला है! पूरे गाँधी परिवार राजनीती में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं! शुरुआत हुई इंदिरा गाँधी जी से और अब सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी और इसी तरह से चलता रहेगा!
बिल्कुल सही कहा है आपने. दुर्भाग्यसे इस देश के अधिकतर लोगों की स्मरणशक्ति बदी कमज़ोर है. इस कारण यह 'नेते' जो जी में आए कर सकते है. कल त्याग की घोषणा कर वाह वाह जुटाओ, आज फिर उसी पद पर जाकर बैठो. कॉंग्रेस पक्षमें पूँछने की हिम्मत रखनेवाला कोई नहीं, और विरोधी पक्ष आपस में लडने में दंग. देश का क्या है, बेचारा कल भी इनके बावजूद चल रहा था, आज भी चल रहा है, और भगवान ने चाहा तो,जैसे भी हो, कल भी चलता रहेगा.
hame to in sabhi baaton se nahi matlab ,parivaarik hi sahi magar desh sucharu roop se chale ,shasak koi bhi ho ,desh ko chalane ki kshamta aur yogyata honi chahiye .achchha laga padhkar ,sundar .
nice post
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