Saturday, February 28, 2009
पुराने खण्डहर...सहेज कर रखें....
.किसी...ने...सच..ही कहा है की...ओल्ड इज गोल्ड!.पर....आज हमारे घरों में .बूढे..माता पिता की .क्या...हालत हो गई है!सही देखभाल न होने से वे भी खंडहरों की माफिक हो गए है.पर क्या करें आज के वक्त का, जो हम इन्हे सहेजने की बजाय .भार...समझने लगें है!ये कैसी विडम्बना है की जिन लोगों ने अपना सरस्व न्योछावर कर .दिया...हमें अपने पैरों पर खड़ा .करने में..! वे ही लोग आज हमारे लिए बेकार .समान...की तरह हो गए है जिन्हें हमने घर के एक कोने में .पटक...रखा है!क्या ये उनके साथ अन्याय नहीं है...क्या आज उन्हें हमारे सहयोग की जरुरत नहीं? फ़िर क्यूँ नही हम उनको सहेजते?वे भी हमसे देखभाल मांगते है..जो उन्होंने बरसों तक हमारी की.उन्होंने हमे एक छोटे पादप से .वृक्ष...बनाया....तो हम भी तो उन्हें छाया .दे....लेकिन अब जमाना बदल गया है...आज खंडहरों की शायद यही कीमत रह गई है...
थोड़ा समय निकाले .बच्चों...के लिए....
आज की इस भागम भाग वाली जिंदगी में सब बस भागते चले जा रहें है...एक होड़ सी मची है आगे निकलने की!लेकिन इस मारामारी में जो पीछे cह्होत्ता जा रहा है..उसकी चिंता कोई नहीं कर रहा है!इस आपाधापी भरे युग में हमने बच्चों को बिल्कुल अकेले छोड़ दिया है!कहाँ तो सयुंक्त परिवार में सब कुछ ज्ञान बच्चों को स्वतः ही मिल जाता था..और कहाँ अब एकल परिवार में माँ बाप का प्यार तक भी नसीब नहीं हो पा रहा है..!माँ बाप दोनों के कमाने की ललक ने बच्चों से उनका बचपन छीन लिया है..!आज ज्यादा पैसे कमाने के चक्कर में हमारे बच्चे अकेलापन महसूस करते हुए हमसे दूर होते जा रहें है!इसलिए संभालिये...इससे पहले की दूरी बहुत बढ़ जाए...उनसे वापस रिश्ता कायम करिए...और अपनों को दूर ना होने दीजिये....
Wednesday, February 25, 2009
रिश्ते निभाइए......
अपने सुख की खातिर रिश्तों को बदनाम ना करें....
जब से दुनिया बनी है तब से ही हम न जाने कितने रिश्तों को निभाते आयें है या यूँ कहिये कुछ को तो बस नाम के लिए ही बनाए रखते है....और जब रिश्ते .बौझ....बनने....लगे तब आवय्क्सकता पड़ती है नए रिश्तों की.और अब तो ये .फेशन....सा बन गया है.इसी आपाधापी में लोग किसी से कुछ भी रिश्ता बना लेते है जो किसी ना किस्सी सवार्थ से .बंधा....होता है....ये रिश्ते अपने काम को निकालने के लिए ही बनाए जाते है इसलिए इनमे .गंभीरता....बहुत कम रह पाती है.इन रिश्तों की आड़ में लोग असली रिश्तों को भूल जाते है या भुलाने की चेष्टा करते हैजिससे कई तरह की समस्याएँ खड़ी हो जाती है....कोई किसी का भी भाई बना बैठा है तो किसी ने चार चार भाइयों के होते हुए भी किसी अन्य को भाई बना रखा है.फ़िर ऐ धीरे इन की आड़ में अनैकिकता का घिनोना खेल शुरू हो जाता है तो फ़िर इन रिश्तों की मर्यादा ख़तम हो जाती है...ये तथाकथित भाई बहन जहाँ असली रिश्तों को कलंकित कर रहे है वहीँ समाज में भी अनातिकता फैला रहें है
जब से दुनिया बनी है तब से ही हम न जाने कितने रिश्तों को निभाते आयें है या यूँ कहिये कुछ को तो बस नाम के लिए ही बनाए रखते है....और जब रिश्ते .बौझ....बनने....लगे तब आवय्क्सकता पड़ती है नए रिश्तों की.और अब तो ये .फेशन....सा बन गया है.इसी आपाधापी में लोग किसी से कुछ भी रिश्ता बना लेते है जो किसी ना किस्सी सवार्थ से .बंधा....होता है....ये रिश्ते अपने काम को निकालने के लिए ही बनाए जाते है इसलिए इनमे .गंभीरता....बहुत कम रह पाती है.इन रिश्तों की आड़ में लोग असली रिश्तों को भूल जाते है या भुलाने की चेष्टा करते हैजिससे कई तरह की समस्याएँ खड़ी हो जाती है....कोई किसी का भी भाई बना बैठा है तो किसी ने चार चार भाइयों के होते हुए भी किसी अन्य को भाई बना रखा है.फ़िर ऐ धीरे इन की आड़ में अनैकिकता का घिनोना खेल शुरू हो जाता है तो फ़िर इन रिश्तों की मर्यादा ख़तम हो जाती है...ये तथाकथित भाई बहन जहाँ असली रिश्तों को कलंकित कर रहे है वहीँ समाज में भी अनातिकता फैला रहें है
नए ब्लोगर ध्यान.दे.....
नए नए ब्लोगेर के सामने बहुत सी परेशानियाँ आती है....उनसे निजात पाने के लिए .हिन्दी ब्लॉग टिप्स पर संपर्क किया जा सकता है। जहाँ आपकी हर समस्या का जवाब मिलेगा.....
Saturday, February 21, 2009
कब सुधरेंगे हम.....
आज की ताज़ा ख़बर ये है की...अमेरिका में सभी लोग भारतियों को .सल्म्दोग कहने लगें है। ये तो होना ही था क्यूंकि विदेशों में यही सब तो बिकता है.उन्हें यहाँ की गरीबी,गन्दगी,झुग्गी झोपडियां और हमारा अपमान ही तो .सुहाता....है.वे कभी भी नहीं भूलते की यही भारत ..है.....गाहे बगाहे वे .हमें...अहसास कराते रहते है की तुम बस यही कुछ हो.हमारे यहाँ की ऐसी बातें उन्हें बहुत पसंद आती है तभी तो भारत की बढ़िया से .बढ़िया...फ़िल्म उन्हें निराश करती है जबकि सलाम दोग उन्हें आकर्षित करती है....इसे वे सभी सम्मान मिल जाते है जिनके लिए बड़े से बड़े निर्माता निर्देशक तरसते रहते है...लेकिन ये सब हमारे लिए निसंदेह शर्मनाक है...हमारी बेचारी बेबसी को बेच कर कोई हमें लज्जित करे ये हमें नहीं .पसंद...पर क्या करें ...पोपुलर होने....की चाह में हम सब भूलते जा रहे है....
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Wednesday, February 18, 2009
और दिल टूट गया....
आजकल ....जिसे ..वो...यही कह रहा है -मेरा तो दिल ही टूट गया,उसने मेरा दिल तोड़ दिया...गोया दिल न हो कोई खिलौना हो गया!अभी कुछ दिन पहले तो मैं ये सुन कर हैरान रह गया जब .एक छोटे से बचे ने कहा...क्या अंकल आप तो मेरा दिल ही तोड़ देते हो...मैंने पूछा कैसे तो उसने कहा की जब भी मैं पिक्चर के लिए कहता हूँ आप .मना....कर देते हो...इससे मेरा दिल टूट जाता है...लो सुनो अब इनका भी दिल टूटने लगा..तो फ़िर युवा लोगों की तो बात ही छोडो.....इस तरह से मुझे लगता है की आजकल पूरा साबुत दिल किसी के पास नहीं है....तो फ़िर दिल लेने देने की तो बात ही बेमानी है...इसलिए ध्यान रखियेगा कहीं आपकी बातों से किसी का दिल ना टूट जाए...
Monday, February 16, 2009
पाप और पुन्य....
"बाबू जी"...घर से निकलते ही मेरे कानों में फ़िर .वही...आवाज़ .टकराई...!आज भी वह .बूढा....पेड़ के नीचे बैठा मुझे पुकार रहा था!बाबू जी एक रोट्टी का सवाल.......!मैं हमेशा की तरह बात पूरी सुने बिना ही आगे बढ़ गया!पिछले दो तीन दिनों से यही हो रहा था!मैं हमेशा की तरह किले के पास पहुँचा और कबूतरों को दाने चुगाने लगा फ़िर मन्दिर की तरफ़ निकलते हुए कुत्तों को रोटी भी .खिला दी!यही मेरा नित्य का नियम था!आत्थ बजते बजते वापस घर पहुँच गया!तैयार होकर जैसे ही आफिस के लिए निकला वैसे ही आवाज़ आई..."बाबूजी"!लेकिन ये आवाज़ उस .बूढे...की नहीं थी बल्कि कुछ अन्य लोगों की थी जो उसके अन्तिम संस्कार के लिए चन्दा इक्कठा कर रहे थे![दैनिक सीमा संदेश.लघु कथा प्रतियोगिता में पुरुस्कृत]
Sunday, February 15, 2009
प्रतिभा किसी की बपौती नहीं.....
यह ख़बर उन सब लोगों के लिए है जो शहर के सबसे मंहगे स्कूल में अपने ओं को पढाना चाहते है.केवल मंहगे स्कूल में भेजने से कुछ नहीं होता.बचों में पढ़ाई की लगन पैदा करना जरूरी है.हमारे यहाँ .गाँव में एक .बच्चा....है...राधाकिशन..जिसकी पढ़ाई की लगन काबिले तारीफ़ है.घर में इतनी गरीबी की पूछो मत,कोई भी पढ़ा लिखा नहीं फ़िर भी उसका जज्बा देख कर हैरानी होती है.कक्षा में प्रथम आना तो कोई बड़ी बात नहीं लेकिन स्कूल की सभी गतिविधियों में उसका भाग लेना और प्रथम आना मुझे हैरान करता है.जबकि शहरी बचों को मिलने वाली कोई सुविधा उसके नसीब में नहीं है.इस पर भी उसे कोई शिकायत नहीं है..बस वो अपना काम बखूबी करता जा रहा है...किसी भी चीज़ की कमी उसे नहीं खलती....इसी से पता चलता है की प्रतिभा का फूल तो कहीं भी ख्गिल सकता है बशर्ते उसे उचित तापमान मिल जाए। जे हो...
अब तो समझे हम....

आज के समाज में भी इतने विकास के बाद भी कन्या जनम को पाप .माना..जाता है.लड़कियों की संख्या घटती जा रही है फ़िर भी लोग समझ नहीं रहे है.आज ऐसा कोई काम नहीं है जो लड़कियां नहीं कर रही हो .फ़िर भी उनके साथ दोगला वयवहार किया जाता है.हम सब को पता है की जहाँ लड़के इतने लाड प्यार के बाद भी .बुढापे....में जहाँ .माँ...बाप को अकेला छोड़ देते हैं वहीं लड़कियाँ शादी के बाद भी माता पिता के संपर्क .में..रहती है और ताउम्र उनकी खिदमत में लगी रह्र्रहती है फ़िर भी उसे माना तो पराई ही जाता है क्यूं .काश इस पीड़ा को हमने समझा होता.अगर म लड़कियों की परवरिश भी लड़कों की भाँती करें तो वो भी लड़कों से कम नहीं होगी बस बात तो नजरिया बदलने की है.....
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